15 फ़रवरी 2021

परिषदीय विद्यालयों प्राथमिक विद्यालय 1,2,3,4,5 की समय सारिणी मिशन प्रेरणा के द्वारा जारी

परिषदीय विद्यालयों प्राथमिक विद्यालय 1,2,3,4,5 की समय सारिणी मिशन प्रेरणा के द्वारा जारी 


 
 1.दो शिक्षकों पर आधारित प्राथमिक विद्यालय 1,2,3,4,5 की समय सारिणी मिशन प्रेरणा के द्वारा जारी



2.तीन शिक्षकों पर आधारित प्राथमिक विद्यालय 1,2,3,4,5 की समय सारिणी मिशन प्रेरणा के द्वारा जारी


एक विशेष कहानी टेढ़ी खीर आपके लिए बोनस के रूप में


एक नवयुवक था। छोटे से क़स्बे का। अच्छे खाते-पीते घर का लेकिन सीधा-सादा और सरल सा। बहुत ही मिलनसार।

एक दिन उसकी मुलाक़ात अपनी ही उम्र के एक नवयुवक से हुई। बात-बात में दोनों दोस्त हो गए। दोनों एक हीही तरह के थे। सिर्फ़ दो अंतर थे, दोनों में। एक तो यह था कि दूसरा नवयुवक बहुत ही ग़रीब परिवार से था और अक्सर दोनों वक़्त की रोटी का इंतज़ाम भी मुश्किल से हो पाता था। दूसरा अंतर यह कि दूसरा जन्म से ही नेत्रहीन था। उसने कभी रोशनी देखी ही नहीं थी। वह दुनिया को अपनी तरह से टटोलता-पहचानता था।

लेकिन दोस्ती धीरे-धीरे गाढ़ी होती गई। अक्सर मेल मुलाक़ात होने लगी।

एक दिन नवयुवक ने अपने नेत्रहीन मित्र को अपने घर खाने का न्यौता दिया। दूसरे ने उसे ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार किया।

दोस्त पहली बार खाना खाने आ रहा था। अच्छे मेज़बान की तरह उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाए।

दोनों ने मिलकर खाना खाया। नेत्रहीन दोस्त को बहुत आनंद आ रहा था। एक तो वह अपने जीवन में पहली बार इतने स्वादिष्ट भोजन का स्वाद ले रहा था। दूसरा कई ऐसी चीज़ें थीं जो उसने अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं खाईं थीं। इसमें खीर भी शामिल थी। खीर खाते-खाते उसने पूछा,

"मित्र, यह कौन सा व्यंजन है, बड़ा स्वादिष्ट लगता है।"

मित्र ख़ुश हुआ। उसने उत्साह से बताया कि यह खीर है।

सवाल हुआ, "तो यह खीर कैसा दिखता है?"

"बिलकुल दूध की तरह ही। सफ़ेद।"

जिसने कभी रोशनी न देखी हो वह सफ़ेद क्या जाने और काला क्या जाने। सो उसने पूछा, "सफ़ेद? वह कैसा होता है।"

मित्र दुविधा में फँस गया। कैसे समझाया जाए कि सफ़ेद कैसा होता है। उसने तरह-तरह से समझाने का प्रयास किया लेकिन बात बनी नहीं।

आख़िर उसने कहा, "मित्र सफ़ेद बिलकुल वैसा ही होता है जैसा कि बगुला।"

"और बगुला कैसा होता है।"

यह एक और मुसीबत थी कि अब बगुला कैसा होता है यह किस तरह समझाया जाए। कई तरह की कोशिशों के बाद उसे तरक़ीब सूझी। उसने अपना हाथ आगे किया, उँगलियाँ को जोड़कर चोंच जैसा आकार बनाया और कलाई से हाथ को मोड़ लिया। फिर कोहनी से मोड़कर कहा,

"लो छूकर देखो कैसा दिखता है बगुला।"

दृष्टिहीन मित्र ने उत्सुकता में दोनों हाथ आगे बढ़ाए और अपने मित्र का हाथ छू-छूकर देखने लगा। हालांकि वह इस समय समझने की कोशिश कर रहा था कि बगुला कैसा होता है लेकिन मन में उत्सुकता यह थी कि खीर कैसी होती है।

जब हाथ अच्छी तरह टटोल लिया तो उसने थोड़ा चकित होते हुए कहा, "अरे बाबा, ये खीर तो बड़ी टेढ़ी चीज़ होती है।"

वह फिर खीर का आनंद लेने लगा। लेकिन तब तक खीर ढेढ़ी हो चुकी थी। यानी किसी भी जटिल काम के लिए मुहावरा बन चुका था "टेढ़ी खीर।"

3. चार शिक्षकों पर आधारित प्राथमिक विद्यालय 1,2,3,4,5 की समय सारिणी मिशन प्रेरणा के द्वारा जारी




4. पांच शिक्षकों पर आधारित प्राथमिक विद्यालय 1,2,3,4,5 की समय सारिणी मिशन प्रेरणा के द्वारा जारी


निर्देश -
1. बाल संसद का आयोजन प्रत्येक शनिवार को होगा।

2.सृजनात्मक कक्षा में कला संगीत कार्यानुभव पुस्तकालय ऑडियो वीडियो से संबंधित गतिविधियां कराई जाएगी।

एक विशेष कहानी टेढ़ी खीर आपके लिए बोनस के रूप में


एक नवयुवक था। छोटे से क़स्बे का। अच्छे खाते-पीते घर का लेकिन सीधा-सादा और सरल सा। बहुत ही मिलनसार।

एक दिन उसकी मुलाक़ात अपनी ही उम्र के एक नवयुवक से हुई। बात-बात में दोनों दोस्त हो गए। दोनों एक ही तरह के थे। सिर्फ़ दो अंतर थे, दोनों में। एक तो यह था कि दूसरा नवयुवक बहुत ही ग़रीब परिवार से था और अक्सर दोनों वक़्त की रोटी का इंतज़ाम भी मुश्किल से हो पाता था। दूसरा अंतर यह कि दूसरा जन्म से ही नेत्रहीन था। उसने कभी रोशनी देखी ही नहीं थी। वह दुनिया को अपनी तरह से टटोलता-पहचानता था।

लेकिन दोस्ती धीरे-धीरे गाढ़ी होती गई। अक्सर मेल मुलाक़ात होने लगी।

एक दिन नवयुवक ने अपने नेत्रहीन मित्र को अपने घर खाने का न्यौता दिया। दूसरे ने उसे ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार किया।

दोस्त पहली बार खाना खाने आ रहा था। अच्छे मेज़बान की तरह उसने कोई कसर नहीं छोड़ी। तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाए।

दोनों ने मिलकर खाना खाया। नेत्रहीन दोस्त को बहुत आनंद आ रहा था। एक तो वह अपने जीवन में पहली बार इतने स्वादिष्ट भोजन का स्वाद ले रहा था। दूसरा कई ऐसी चीज़ें थीं जो उसने अपने जीवन में इससे पहले कभी नहीं खाईं थीं। इसमें खीर भी शामिल थी। खीर खाते-खाते उसने पूछा,

"मित्र, यह कौन सा व्यंजन है, बड़ा स्वादिष्ट लगता है।"

मित्र ख़ुश हुआ। उसने उत्साह से बताया कि यह खीर है।

सवाल हुआ, "तो यह खीर कैसा दिखता है?"

"बिलकुल दूध की तरह ही। सफ़ेद।"

जिसने कभी रोशनी न देखी हो वह सफ़ेद क्या जाने और काला क्या जाने। सो उसने पूछा, "सफ़ेद? वह कैसा होता है।"

मित्र दुविधा में फँस गया। कैसे समझाया जाए कि सफ़ेद कैसा होता है। उसने तरह-तरह से समझाने का प्रयास किया लेकिन बात बनी नहीं।

आख़िर उसने कहा, "मित्र सफ़ेद बिलकुल वैसा ही होता है जैसा कि बगुला।"

"और बगुला कैसा होता है।"

यह एक और मुसीबत थी कि अब बगुला कैसा होता है यह किस तरह समझाया जाए। कई तरह की कोशिशों के बाद उसे तरक़ीब सूझी। उसने अपना हाथ आगे किया, उँगलियाँ को जोड़कर चोंच जैसा आकार बनाया और कलाई से हाथ को मोड़ लिया। फिर कोहनी से मोड़कर कहा,

"लो छूकर देखो कैसा दिखता है बगुला।"

दृष्टिहीन मित्र ने उत्सुकता में दोनों हाथ आगे बढ़ाए और अपने मित्र का हाथ छू-छूकर देखने लगा। हालांकि वह इस समय समझने की कोशिश कर रहा था कि बगुला कैसा होता है लेकिन मन में उत्सुकता यह थी कि खीर कैसी होती है।

जब हाथ अच्छी तरह टटोल लिया तो उसने थोड़ा चकित होते हुए कहा, "अरे बाबा, ये खीर तो बड़ी टेढ़ी चीज़ होती है।"

वह फिर खीर का आनंद लेने लगा। लेकिन तब तक खीर ढेढ़ी हो चुकी थी। यानी किसी भी जटिल काम के लिए मुहावरा बन चुका था "टेढ़ी खीर।"


A special story as a bonus for you



Was a young man. Small town. A good eating and drinking house but simple and simple. Very sociable.

One day he met a young man of his own age. In conversation, both became friends. Both were of the same type. There were only two differences, both. One was that the second young man was from a very poor family and often the bread of both times was also difficult to arrange. The second difference is that the second person was blind from birth. He had never seen the light. He used to explore the world in his own way.

But the friendship slowly grew stronger. Often they started meeting.

One day the young man invited his blind friend to eat at his house. The other accepted him happily.

Friend was coming to eat for the first time. She left no stone unturned like a good host. Make a variety of dishes and dishes.

The two ate food together. The blind friend was enjoying a lot. One, he was tasting such delicious food for the first time in his life. There were many other things he had never eaten before in his life. It also included kheer. He asked while eating kheer,

"Friend, what dish is this, tastes delicious."

The friend was happy. He excitedly told that it is kheer.

The question was, "So what does this kheer look like?"

"Just like milk. White."

Whoever has never seen the light knows what is white and what is black. So he asked, "White? How is that?"

Friend got stuck in dilemma. How to explain what white is like. He tried to explain it in different ways but it did not work.

After all he said, "Friend white is just like heron."

"And how is the heron."

This was another problem, how to explain how the heron is now. After several attempts, he got the idea. He moved his hand forward, folded his fingers and made a beak-like shape and folded the arm from the wrist. Then bend the elbow and say,

"Lo touch and see what Heron looks like."

The blind friend raised both his hands in curiosity and began to touch his friend's hand. Although at this time he was trying to understand what the heron is like, but the curiosity in his mind was how the kheer is.

When the hand was well fused, he was a little surprised and said, "Oh Baba, this kheer is a very crooked thing."

He then started enjoying kheer. But by then the kheer was thick. That is, for any complex work, the phrase had become "Teri Kheer".

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