स्कूल में दर्ज जन्मतिथि आयु का प्रथम प्रमाण मानी जाएगी:- हाई कोर्ट,
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि स्कूल में दर्ज जन्मतिथि आयु का प्रथम प्रमाण मानी जाएगी। इसके ना होने पर निकाय का जन्म प्रमाण पत्र मान्य होगा, दोनों ही ना हो तो मेडिकल जांच से तय उम्र मान्य होगी।
यह वक्तव्य कोर्ट द्वारा एक मामले में कहा गया। जहां कोर्ट ने कहा कि पीड़ित नाबालिग है, तो उसे किशोर न्याय कानून के तहत संरक्षण दिया जाना जरूरी है। इसी के साथ कोर्ट ने प्रयागराज के खुल्दाबाद स्थित बाल संरक्षण गृह में पीड़िता को रखने के बाल कल्याण समिति के आदेश को वैध करार दिया और मेडिकल जांच रिपोर्ट के आधार पर बालिक होने के नाते अवैध निरुद्धी से मुक्त कराने की मांग में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी।
इस आदेश को न्यायमूर्ति बच्चू लाल एवं न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने दिया है। लड़की के परिवार वालों ने 23 दिसंबर 2020 को अपना षड्यंत्र व पॉक्सो एक्ट के तहत फतेहपुर के थाने में एफ आई आर दर्ज करा कर कहा कि उनकी लड़की 16 साल 2 माह की है।
बरामदगी के बाद लड़की ने बयान में कहा कि वह 17 साल की है। स्कूल प्रमाण पत्र में उसकी जन्म तिथि 2 अप्रैल 2004 दर्ज है। इससे साबित होता है कि वह नाबालिग है। याचियों का कहना था कि उन्होंने गुजरात के मंदिर में शादी कर ली है। मेडिकल जांच रिपोर्ट के अनुसार लड़की की आयु 19 साल है, इसलिए उसकी निरूद्धी भी अवैध है। उन्हें तलब कर मुक्त कराया जाए। कोर्ट ने किशोर न्याय कानून व सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि घटना के समय वह नाबालिग थी। इसलिए संरक्षण गृह में रखने का आदेश विधि सम्मत व कमेटी को प्राप्त अधिकार के तहत दिया गया है।
द्वारा सोशल मीडिया।