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सपोर्टिव सुपरविजन के दौरान अध्यापकों को नोट कराए जाने वाले महत्वपूर्ण बिंदु।इसमें पूरे मिशन की सफलता का सार लिखा है।

सपोर्टिव सुपरविजन|सपोर्टिव सुपरविजन के दौरान अध्यापकों को नोट कराए जाने वाले महत्वपूर्ण बिंदु।इसमें पूरे मिशन की सफलता का सार लिखा है।

 सपोर्टिव सुपरविजन के दौरान अध्यापकों को नोट कराए जाने वाले महत्वपूर्ण बिंदु।इसमें पूरे मिशन की सफलता का सार लिखा है।

समस्त सम्मानित एकेडमिक टीम के सदस्य एवं एसआरजी/एआपी साथी इन बिंदुओं को ध्यान पूर्वक पढ़ कर यदि कहीं कोई संशोधन की आवश्यकता है तो कृपया संशोधन करें और अपने अपने विकास क्षेत्र  में समस्त शिक्षकों को नोट कराएं ताकि समस्त जनपद  में एक ही संदेश प्रेषित हो।


1- मिशन प्रेरणा


    यह सरकार का सर्वोच्च  महत्वकांक्षी कार्यक्रम है जो 5 सितंबर 2019 से गतिमान है जिसका उद्देश्य प्रेरणा लक्ष्य में परिभाषित है।

              अथवा

यह सरकार की सर्वोच्च महत्वाकांक्षी योजना है । यह 5 सितंबर 2019 को लागू हुई थी। इसका उद्देश्य परिषदीय विद्यालयों में अध्ययनरत सभी बच्चों को Grade Competency हासिल कराना है।


2- प्रेरणा लक्ष्य


   कक्षा वार एवं विषय वार निर्धारित न्यूनतम अधिगम स्तर ही प्रेरणा लक्ष्य है।

     जो कक्षा 1 से  5 तक भाषा और गणित के लिए निर्धारित किए गए हैं। इस प्रकार 5 भाषा के और 5 गणित के लक्ष्य हैं।

भाषा-  5, 20, 30 ,छोटा 75, बड़ा 75

गणित -5 ,75 ,75  ,75 ,75


3-  प्रेरणा सूची


कक्षा वार एवं विषय वार अपेक्षित  दक्षताओं की सूची ही प्रेरणा सूची है।

           Or

बच्चों में विकसित की जाने वाली कक्षा वार एवं विषय वार अपेक्षित दक्षताओं की सूची प्रेरणा सूची कहलाती है। कक्षा 1 से 3 तक 14 -14 एवं कक्षा 4और 5 में 16-16  दक्षताएं निर्धारित हैं। यह प्रेरणा लक्ष्य रूपी छत पर चढ़ने के लिए बनाई गई सीढ़ी है।


4- प्रेरणा तालिका


बच्चों के द्वारा अर्जित की गई कक्षा वार एवं विषय वार दक्षताओं की वास्तविक स्थिति को प्रदर्शित करने वाली तालिका ही प्रेरणा तालिका कहलाती है । इसमें भी प्रेरणा सूची में वर्णित दक्षताएं ही दी गई हैं इसके अतिरिक्त इसमें 1 से लेकर 30 तक छात्रों का विवरण और जोड़ दिया गया है यहां हम छात्रों का नाम लिख देंगे।

     


5-  लर्निंग आउटकम 


        इसका शाब्दिक अर्थ होता है अधिगम के प्रतिफल/ सीखने के परिणाम /अधिगम संप्राप्ति।


        लेकिन जिस भाव से इस शब्द का प्रयोग पाठ्य पुस्तकों में /शैक्षिक जगत में किया जा रहा है उसके अनुसार इसका अर्थ कुछ इस प्रकार है-

   

    विद्यार्थियों के सीखने को ध्यान में रखते हुए दैनिक कक्षा शिक्षण के उद्देश्य से कक्षावार, विषय वार पाठ्यक्रम में निर्धारित ज्ञान को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया गया है जिसे लर्निंग आउटकम या एक्सपेक्टेड लर्निंग आउटकम कहते हैं।

          

अथवा


    विद्यार्थियों में विकसित की जाने वाली कक्षा के स्तरानुसार, विषय वार, पाठ्यक्रम में निर्धारित अपेक्षित दक्षताओं को ही  अपेक्षित सीखने के प्रतिफल कहते हैं।


   अथवा 


      अपेक्षित अधिगम प्रतिफल /दक्षताओं का बच्चों के व्यवहार में परिलक्षित होना ही वास्तविक अधिगम के प्रतिफल (Actual Learning outcomes ) या लर्निंग आउटकम का प्राप्त होना कहलाता है।


अपेक्षित सीखने के प्रतिफल Expected learning outcomes


कक्षा के स्तर के अनुसार एवं विषय वार पाठ्यक्रम में निर्धारित अपेक्षित दक्षताएं ही अपेक्षित सीखने के प्रतिफल (Expected Learning outcomes )/अपेक्षित सीखने के परिणाम /अपेक्षित अधिगम संप्राप्ति हैं।


6- वास्तविक अधिगम प्रतिफल


     कक्षावार एवं विषय वार पाठ्यक्रम में निर्धारित अपेक्षित दक्षताओं में से बच्चे द्वारा अर्जित दक्षताएं जो उसके व्यवहार में परिलक्षित होती हैं वास्तविक अधिगम प्रतिफल कहलाता है।


7-  अधिगम स्तर में अंतर

Learning Gap


कक्षा अनुरूप अपेक्षित अधिगम स्तर और वास्तविक अधिगम स्तर के अंतर को अधिगम स्तर में अंतर( learning gap )कहते हैं।


EL-AL= LG

 

Expected learning outcome-Actual learning outcome= Learning gap


8- अध्ययन- अध्यापन की दृष्टि से लर्निंग आउटकम को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है-


a-  Focal learning outcomes केंद्रिक लर्निंग आउटकम


यह व्यापक दृष्टिकोण पर आधारित होते हैं।


b-  Nested learning outcomes

नेस्टेड लर्निंग आउटकम


     नेस्टेड का अर्थ होता है छुपा हुआ अंतर्निहित अर्थात् यह फोकल लर्निंग आउटकम के अंदर निहित होते हैं जो सीधे तौर पर शिक्षण प्रक्रिया को दिशा देने तथा शिक्षण में सुधार की दृष्टि से विकसित किए गए हैं।


c-  उप लर्निंग आउटकम


   नेस्टेड लर्निंग आउटकम को उप लर्निंग आउटकम में विभाजित किया गया है जिनके आधार पर शिक्षक कक्षा शिक्षण करते हैं।


भाषा के लिए चार फोकल लर्निंग आउटकम हैं


 1-    सुनना बोलना ,

2- पढ़ना लिखना 

3- भाषा संरचना और व्याकरण

4-  कल्पना और सृजनशीलता


गणित के लिए 5 फोकल लर्निंग आउटकम निर्धारित हैं-


1- बच्चे अपने परिवेश को मात्रात्मक रूप से देखने व समझने के लिए संख्याओं का प्रयोग करते हैं।


2-  बच्चे संख्याओं के बीच संबंधों को समझकर गणितीय संक्रिया के उपयोग में कुशल हैं।


3-  बच्चे किसी संख्या या संख्या समूह को उसके हिस्सों के रूपों में देख पाते हैं तथा संख्या के हिस्सों के साथ विभिन्न गणितीय संक्रियाओं की समझ को व्यक्त करते हैं ।


4- बच्चे स्थान व मात्रा के विभिन्न गणितीय पहलुओं का परिवेश की जानकारी को समझने और दर्शाने तथा अपनी कल्पनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए करते हैं।


5- बच्चे समय ,मुद्रा और आंकड़ों का महत्व समझते हैं तथा उसका उपयोग अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए करते हैं।

9- आधारशिला


      इस हस्त पुस्तिका का निर्माण कक्षा 1 और 2 के बच्चों में भाषा और गणित की गहरी ,बुनियादी एवं स्पष्ट समझ विकसित करने के उद्देश्य से किया गया है। ऐसा इस हस्तपुस्तिका के कवर पृष्ठ के आंतरिक पृष्ठ पर लिखे हुए विवरण के अनुसार है। लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि कक्षा 3 के बच्चों का स्तर भी कक्षा 2 के स्तर पर आ गया होगा ऐसे में इस हस्त पुस्तिका का प्रयोग कक्षा 1,2 और 3  के लिए भी प्रभावी है। हालांकि इसमें ERAC आधारित भाषा की गतिविधियां एवं ELPS सिद्धांत पर आधारित  गणित शिक्षण के माध्यम  से कक्षा 1 से 8 तक प्रभावी तरीके से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया संपन्न की जा सकती है।

     इस हस्त पुस्तिका में कक्षा 3, 4 एवं 5 में भाषा ,गणित एवं पर्यावरण  अध्ययन पर दृष्टिपात किया गया है।

    

इसमें लर्निंग आउटकम आधारित शिक्षण योजना के निर्माण के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है। भाषा की शिक्षण योजनाएं ERAC पैटर्न पर एवं गणित की शिक्षण योजनाएं ELPS के पैटर्न पर दी गई हैं। इसमें सुनने और बोलने के कौशल को विकसित करने के लिए 40 गतिविधियां दी गई हैं एवं विभिन्न गतिविधियों के ढांचे दिए गए हैं जिन्हें हम कक्षा 1 से 8 तक कठिनाई स्तर को बढ़ाते हुए स्थानांतरित कर सकते हैं  एवं एक ही गतिविधि से विभिन्न विषय पढ़ाए जा सकते हैं।


10-  ERAC


E - Experience (अनुभव) 

        अनुभव दो प्रकार के होते हैं एक तो वह जो बच्चों ने प्राप्त कर लिए हैं ,दूसरे वह जो इस गतिविधि के बाद बच्चों को मिलेंगे। अब प्रश्न उठता है कि बच्चे अनुभव क्यों लें वे तो खेलने, खाने एवं पीने में मस्ती लेते हैं उन्हें अनुभव से क्या लेना देना। बच्चे अनुभव तब लेंगे जब हम रोचक तरीके से शुरुआत करें तो रोचक तरीके से शुरुआत करने के लिए सेब, संतरा या टॉफी नहीं लाएंगे। यह भी संभव नहीं है कि प्रत्येक विषय के प्रत्येक पाठ के प्रत्येक प्रकरण को हम चार्ट बना पाएं, टीएलएम लेकर आएं तो ऐसे में ऐसा क्या करें जिससे के रोचकता आए रुचि पूर्ण ढंग से शुरुआत हो?


      ऐसे में हमें आवश्यकता है बच्चों के अनुभवों से प्रारंभ करने की अर्थात् उनके  परिवार की, मोहल्ले की ,गांव की, खेतों की  एवं विद्यालय में मौजूद वस्तुओं से शुरुआत करने की जो कि उसके लिए रुचिकर होगी तत्पश्चात उसके सामने चुनौती पूर्ण संदर्भ रचते हुए चिंतन के अवसर देंगे इस कार्य में रोचकता चुनौती एवं सभी बच्चों की सहभागिता अनिवार्य है।


R - Reflection (चिंतन एवं विश्लेषण) 

      जैसे ही बच्चे के सामने चुनौतीपूर्ण संदर्भ, माहौल रचा जाएगा तो बच्चे तर्क, चिंतन, कल्पना एवं अनुमान लगाते हुए नए विचारों का सृजन करेंगे जिससे कि सीखना सुनिश्चित होगा। चिंतन के लिए क्यों ,कैसे एवं अगर से प्रारंभ होने वाले प्रश्न करें। वरना सुनो कहने से कोई सुनता नहीं, ध्यान दो कहने से कोई ध्यान नहीं देता, चिंतन करो कहने से कोई चिंतन नहीं करता और सोचो कहने से कोई सोचता नहीं है। कोई भी व्यक्ति तब सुनता है जब उसे यह एहसास हो कि आप उसके काम की बात कर रहे हैं ।व्यक्ति तब सोचता है जब उसके सामने चुनौती होती है एवं खुले उत्तर वाले प्रश्न होते हैं।


A- Application (अनुप्रयोग)

     

        उक्त दो चरणों के बाद सीखे हुए ज्ञान का दूसरे संदर्भ, दूसरे प्रसंग ,दूसरे माहौल एवं दूसरी परिस्थिति, में व्यवहार में ,अपनी असल जिंदगी में, दूसरे बच्चों के साथ समूहों में प्रयोग करने के अवसर दें।


C -Consolidation( समेकन/ निष्कर्ष)

   

        पूरी प्रक्रिया को दोहराना बातचीत के माध्यम से पता करना कि बच्चे प्रथम बार चिंतन किस प्रकार से कर रहे थे? उसके बाद एप्लीकेशन के दौरान किस प्रकार से सोच रहे थे, वह किसे अच्छा या बुरा कह रहे थे और क्यों कह रहे थे इसके साथ ही साथ लर्निंग आउटकम से जोड़ना आवश्यक है। यहां स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।


ELPS -


E -Experience( अनुभव )

        

        आसपास एवं विद्यालय में मौजूद ठोस/ मूर्त वस्तुओं के साथ बच्चों को खेलने उन्हें उलटने -पलटने के अवसर देंगे। इनके माध्यम से गिनना, अंक बोध ,संख्या बोध एवं जोड़ -घटा की क्रिया सिखाएं। 


L- Language( भाषा)


         उन वस्तुओं के बारे में जिनसे  बच्चे रूबरू हुए हैं बातचीत करेंगे।


P- Picture (चित्र)


       हर प्रकार की ठोस वस्तु वहां मौजूद नहीं है उदाहरण के लिए हम हाथी वहां नहीं ला पाएंगे, हम ट्रेन वहां नहीं ला पाएंगे, हम बस वहां नहीं ला पाएंगे, तो अब ठोस वस्तुओं पर बातचीत करने के बाद किताबों , चार्टों एवं दीवारों पर बने चित्रों के माध्यम से उसी प्रक्रिया को दोहराएंगे और वार्तालाप करेंगे।


S -Symbol( प्रतीक)


        उपरोक्त तीनों चरणों को क्रम से पूर्ण करने के बाद अब प्रतीकों/संकेतों अर्थात्  अंक ,संख्याओं, चिन्हों (1,2,3 ....,24, 36....,+जोड़ ,- घटा ,×गुणा,÷भाग,=बराबर ,% प्रतिशत  आदि की स्पष्ट समझ विकसित करेंगे।

     उक्त सभी चरणों का गणित के बुनियादी स्तर पर प्रयोग करके गणित सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को रोचक, सरल, सरस एवं ग्राह्य बनाया जा सकता है।


12-ध्यानाकर्षण 


   ऐसे बच्चे जिनका अधिगम स्तर कक्षा के अनुरूप नहीं है उनकी पहचान कर विशेष शिक्षण तकनीकों का प्रयोग करते हुए उन्हें कक्षा के अनुरूप अधिगम स्तर पर लाने के लिए इस  हस्तपुस्तिका का निर्माण किया गया है। 

    लर्निंग गैप को भरने के लिए इस हस्त पुस्तिका में प्रभावी शिक्षण तकनीकियां दी गई हैं। 

     अन्य शब्दों में ऐसे बच्चे जो मुख्यधारा से वंचित हो गए हैं उन्हें पुनः मुख्यधारा में जोड़ने के उद्देश्य से इस हस्त पुस्तिका का निर्माण किया गया है। इसमें चार भाग हैं 


 प्रथम भाग


      इसमें आवश्यकता उद्देश्य एवं अपेक्षित अधिगम स्तर प्राप्त न कर पाने के कारणों के विषय में दिया गया है।


      द्वितीय भाग


       इसमें लर्निंग आउटकम,  लर्निंग गैप एवं आकलन प्रपत्रों के माध्यम से बच्चों के चिन्हांकन , वर्गीकरण एवं समूहीकरण के बारे में चर्चा की गई है।


  तृतीय भाग 


        इसमें कक्षा शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए तैयारियां एवं तकनीकियों के बारे में चर्चाएं एवं शिक्षण तकनीकी पर आधारित शिक्षण योजनाएं दी गई हैं ।


 चतुर्थ भाग  


      इसमें आरंभिक परीक्षण प्रपत्र के कुछ नमूने एवं कक्षा 1 से 8 तक हिंदी, गणित, विज्ञान और अंग्रेजी के सिलेक्टिव लर्निंग आउटकम और प्रभावी शिक्षण तकनीक तालिका के विषय में चर्चा की गई है।


13- शिक्षण तकनीकियां(18)


   

1- संसाधनों से पूर्ण कक्षा-कक्ष का वातावरण 

2- कक्षा प्रबंधन बैठक व्यवस्था

3- रोचक प्रस्तावना

 4-शिक्षण अधिगम सामग्री का उपयोग

 5-शैक्षिक गतिविधियां /नवाचार/ रोचक खेलो/ रोलप्ले /कहानी आदि का उपयोग

 6-प्रश्न पूछना

7- सीखने के लिए बातचीत 

8-बच्चों के लिए कार्यपत्रक

 9-सभी को शामिल करना

10- समूह कार्य 

11-जोड़ी में कार्य

12- परिवेशीय संसाधनों का उपयोग 13-अभ्यास के अवसर देना 

14-अर्जित ज्ञान की पुनरावृत्ति

15- सकारात्मक प्रतिपुष्टि देना

16- शैक्षिक भ्रमण

17- सरल से कठिन की ओर 

18-प्रोजेक्ट कार्य।


14-आरंभिक आकलन/परीक्षण प्रपत्र


प्राथमिक स्तर कक्षा 3 ,4 एवं 5 के लिए आकलन प्रपत्रों का निर्माण किया जाएगा लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए कक्षा 4 और 5 के लिए भाषा एवं गणित के प्रपत्र आवश्यक रूप से बना लें क्योंकि कक्षा 1,2,3 के बच्चों की जांच के बारे में आधारशिला मॉड्यूल में फाउंडेशन लर्निंग शिविर के उद्देश्य से दी गई है इनके बारे में विस्तृत जानकारी के लिए आधारशिला मॉड्यूल पेज नंबर 12 एवं ध्यानाकर्षण मॉड्यूल पेज नंबर 10, 11 ,12, 13 एवं 14 पर देखें।


15- शिक्षण संग्रह


   इस हस्त पुस्तिका का निर्माण शिक्षकों की आवश्यकता एवं व्यवसायिक विकास को ध्यान में रखते हुए ,महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारियों, सूचनाओं एवं विभिन्न शैक्षिक संदर्भों को समेकित करते हुए किया गया है।

   इसमें लर्निंग आउटकम आधारित शिक्षण योजना, टाइम टेबल ,आईसीटी का प्रयोग ,व्यक्तित्व विकास की योजना, सीखने के लिए आकलन, विद्यालय नेतृत्व ,सामुदायिक सहभागिता, प्रतिदिन अलग-अलग प्रार्थनाएं ,समूह गान ,महत्वपूर्ण दिवस एवं  तिथियां , अन्य विभागों से सहयोग एवं समन्वय के विषय में विशद और विस्तृत वर्णन किया गया है।


16- शिक्षण योजना

Teaching Plan


शिक्षण योजना, पाठ योजना से थोड़ी भिन्न होती है।पाठ योजना किसी पाठ के प्रकरण पर आधारित होती है, जबकि शिक्षण योजना लर्निंग आउटकम आधारित होती है।


शिक्षण योजना निर्माण की विधि


शिक्षण की शुरुआत में


 सर्वप्रथम हम प्रेरणा सूची में दिए गए किसी लर्निंग आउटकम को चुनते हैं फिर यह देखते हैं कि उस लर्निंग आउटकम को आप किस पाठ के माध्यम से अपने बच्चों को प्राप्त करा सकते हैं। तत्पश्चात शिक्षण से पूर्व आप बच्चों के साथ क्या क्या बातचीत करेंगे इसके विषय में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु बच्चों के पूर्व अनुभवों से अर्थात् उनके परिवेश की ठोस वस्तुओं से चुनते हैं।


 शिक्षण के दौरान


 बच्चों को चिंतन और अनुप्रयोग के अवसर देने के लिए आप कोई गतिविधि ,दीक्षा एप का प्रयोग, टी एल एम का प्रयोग कर सकते हैं।


 शिक्षण के उपरांत


 इस भाग में आप समेकन, निष्कर्ष पूरी प्रक्रिया को दोहराते हुए मूल्यांकन करते हैं।


  स्वमूल्यांकन


 स्व मूल्यांकन में यह देखते हैं कि जिस लर्निंग आउटकम को आपने चुना था उस लर्निंग आउटकम को प्राप्त करने के लिए आपके द्वारा चयनित गतिविधि, टी एल एम, आईसीटी का प्रयोग कितना सफल रहा एवं कौन-कौन सी चुनौतियां आईं एवं उन चुनौतियों को दृष्टिगत रखते हुए आगामी कार्य योजना बनाते हैं।


     हिंदी भाषा की शिक्षण योजना ERAC पैटर्न पर होती हैं एवं गणित की शिक्षण योजना  ELPS के आधार पर होती हैं। शिक्षण योजना का प्रारूप आधारशिला हस्त पुस्तिका के पेज नंबर 60 , 61, 81 एवं 82 तथा शिक्षण संग्रह हस्तपुस्तिका के पेज नंबर 29, 30, 31 ,32 और 130 से 178 तक विभिन्न शिक्षण योजनाएं दी गई हैं।


17- समय सारणी

Time Table

    

ऐसी समय सारणी का निर्माण करना है जिसमें सभी अध्यापकों को सभी कक्षाओं में जाने के अवसर मिलें। इसका मुख्य कारण यह है कि प्रत्येक शिक्षक के अंदर अलग-अलग व्यक्तिगत गुण होते हैं। जब वे सभी कक्षाओं में अध्ययन अध्यापन करेंगे तो सभी कक्षाओं के बच्चों को उनके उनकी विद्वता एवं व्यक्तित्व से लाभान्वित होने का अवसर प्राप्त होगा। कम्पोजिट विद्यालय में समय सारणी इस प्रकार बनाई जाए कि कक्षा 1 से लेकर 8 तक सभी अध्यापकों को सभी कक्षाओं में जाने के अवसर मिलें। प्रधानाध्यापक एवं प्रभारी प्रधानाध्यापक अपना एक पीरियड शुरुआती  कक्षा 1,2 में जरूर रखें।


18- शिक्षण अधिगम सामग्री

TLM


       टी एल एम वस्तुओं में नहीं होता वल्कि यह शिक्षक के मस्तिष्क में होता है ।यह आपके द्वारा वस्तु के उपयोग करने के तरीके में निहित होता है ।आप किसी भी चीज को t.l.m. के रूप में प्रयोग कर सकते हैं ।हमारे विद्यालय में हमारा कक्षा कक्ष एवं इस में उपस्थित मेज, कुर्सी, ब्लैक बोर्ड, फर्श की टाइलें, दीवार पर लगी टाइलें, जंगले, खिड़की ,दरवाजे ,नोटबुक ,उसके पेज, पेज पर लाइन, रजिस्टर, रजिस्टर में बने आयताकार वर्गाकार खाने ,हमारा शरीर स्वयं में बहुत बड़ा t.l.m. है। आप के आस पास पाए जाने वाले पेड़ पौधे जीव जंतु यह सभी t.l.m. में ही आते हैं बस आवश्यकता है एक क्षण इनमें टीएलएम खोजने का नजरिया बनाने की।

        खीर जैसा टी एल एम बनाने से बचें  अर्थात् खीर बनाने में बहुत लागत एवं समय लगता है लेकिन खाने में बहुत कम समय लगता है ।उसी प्रकार से ऐसे t.l.m. बनाने से बचें जिन्हें बनाने में बहुत समय और लागत आती है लेकिन जब प्रदर्शन करने आए तो मात्र 2 मिनट में उनका काम पूर्ण हो जाता है। टी एल एम टीचर के रूप में फेमस नहीं होना है। t.l.m. दिखावे के लिए नहीं बल्कि उसका उपयोग बच्चों के सीखने सिखाने को प्रभावी बनाने में होना चाहिए।


19- सामुदायिक सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से अभिभावकों को प्रोत्साहित करना-


अभिभावकों को जागरूक करना उन्हें शिक्षा के महत्व को समझाना परम आवश्यक है क्योंकि विद्यालय खुलने के बावजूद भी हमारे पास बच्चे लगभग 6 घंटे ही रहते हैं शेष 18 घंटे बच्चे अपने अभिभावकों एवं अपने परिवेश में रहते जिसका असर उनके जीवन में स्थाई होता है अतः  जब तक हमें अभिभावकों का सहयोग नहीं मिलेगा वह अपने बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों के बारे में सजग नहीं होंगे तब तक मिशन प्रेरणा के लक्ष्य को हासिल करना चुनौतीपूर्ण कार्य है ।


      ई पाठशाला के फेज- 2 का मुख्य उद्देश्य यही है कि हमारे अभिभावकों के साथ पारिवारिक रिश्ते बनें उनके मन में जो परिषदीय विद्यालयों के प्रति छवि बनी हुई है उसमें परिवर्तन हो उन्हें यह एहसास हो कि वर्तमान सरकार बच्चों में बुनियादी शिक्षा के विकास के लिए कटिबद्ध है और आप लोग भी उनके बच्चों के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार हैं ।उन्हें यह भी एहसास कराइए के परिषदीय विद्यालयों में अध्यापक प्राइवेट विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों की अपेक्षा योग्य होते। इसके साथ ही साथ अभिभावकों को प्रेरित करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है कि जब आप उनसे बात करें तो संवेगात्मक, संवेदनात्मक , भावात्मक भाषा में बात करें।   उनके गांव के सफलतम व्यक्तियों के उदाहरण देते हुए बातचीत करें। हम उन्हें इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, फिनलैंड  ,पोलैंड ,हॉलैंड, स्विटजरलैंड , नीदरलैंड आदि देशों के के सफलतम व्यक्तियों के उदाहरण देने से बचें क्योंकि वह उनके बारे में जानते ही नहीं हैं।


      आप कुछ ऐसे प्रश्न कर सकते हैं  इनके सापेक्ष अधिकतर अभिभावकों द्वारा निम्न प्रकार संभावित उत्तर दिए जा सकते हैं-


1- आप लोग कड़ी धूप में गर्मी सहन करते हुए ,कड़ाके की सर्दी में ठिठुरते हुए एवं तेज बारिश में भीगते हुए किसके लिए काम करते हो?


उत्तर- बच्चों के लिए


2- क्या सब कुछ करने के बाद भी आप यह चाहते हैं कि आपके बच्चे डॉक्टर, मास्टर, इंजीनियर ,वकील, जिलाधिकारी, कमिश्नर न बनें?


 उत्तर-नहीं 


3- क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चे गरीब मजदूर एवं खेतिहर किसान बने रहें?

 उत्तर -नहीं 

4- क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चे दूसरों के लिए कमाते रहें ?


उत्तर- नहीं


5- आप यहां स्पष्टीकरण करिए कि आप चाहते नहीं हैं लेकिन अनजाने में ऐसा ही कर रहे हैं कि आपके बच्चे ऐसे ही बने रहें तो वे लोग भावुक हो जाएंगे और आपसे पूछेंगे कि वे ऐसा क्या कर रहे हैं?


6- आप उनसे पुनः पूछिए क्या आप अपने बच्चों को प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट का समय पढ़ाई-लिखाई देखने के लिए देते हैं?


उत्तर -नहीं


7-  क्या आप अपने बच्चे की नोटबुक पर देखते हैं कि उसने कुछ काम किया है या नहीं ?

उत्तर -नहीं

   

       प्रकार बातचीत के माध्यम से हम उन्हें उनकी जिम्मेदारी के बारे में बताएं कि उनके बच्चों के सुंदर भविष्य एवं सफल होने के लिए उनकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।


जिम्मेदारियां


आप अपने बच्चे को प्रतिदिन विद्यालय भेजें यदि बहुत आवश्यक कार्य है तो सुबह तड़के एवं 3 बजे के बाद आप थोड़ा सहयोग अपने कार्यों में ले सकते हैं ।


प्रतिदिन अपने बच्चे को शाम को 30 मिनट का समय दीजिए और पूछिए कि आज उसने क्या पढ़ा है? यदि आप पढ़े लिखे नहीं हैं और आपके पास समय भी नहीं है तो कम से कम शाम को खाना खाते समय बस पूछ लीजिए आज क्या -क्या पढ़ा है और लिखा है कॉपी दिखाओ।


आप अपने बच्चे को नोटबुक और पेन दिलवा दीजिए बाकी सभी चीजें सरकार के माध्यम से आपको मिल रही हैं।


एक उदाहरण देकर हमने यहां अभिभावकों को प्रेरित करने के तरीकों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।


          ऐसे ही आप कुछ अन्य तरीके प्रयोग कर सकते हैं जिससे  अभिभावक निश्चित रूप से आपका सहयोग करने लगेंगे और परिषदीय विद्यालयों की छवि बहुत शानदार बन जाएगी । किस प्रकार यह हमेशा एक जन आंदोलन बन जाएगा, जनमानस की पुकार पूरी होगी, वर्तमान समय की मांग पूर्ण होगी , हमारा मिशन सफल होगा, हमारे मिशन प्रेरणा के‌‌ लक्ष्य प्राप्त हो जाएंगे और हमारा जनपद प्रेरक जनपद व हमारा उत्तर प्रदेश प्रेरक प्रदेश बनते हुए देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए एक नजीर बन जाएगा।


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