शाओलिन कुंग्फू... ताइक्वांडो और कराटे का जन्मदाता भारत वर्ष है
भारत के स्कूल की किताबों में ये कब पढ़ाया जाएगा कि पूरे दक्षिण एशिया को युद्धविद्या सिखाने वाला देश भारत वर्ष है ?
- एक हजार साल की गुलामी... लार्ड मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से पैदा हुई आज भी जारी मानसिक गुलामी और कम्युनिस्ट प्रोपागेंडा के बादलों के बीच में भारत का गौरव रूपी सू्र्य छुप गया है
-इसीलिए आज हमारे देश के हिंदुओं को ये भी नहीं पता कि चीन... जापान... दक्षिण कोरिया को युद्ध की विद्या सिखाने वाला देश भारत वर्ष है । भारत को विश्वगुरु यूं ही नहीं कहा जाता था...ऐसी ही ऐतिहासिक उपलब्धियों की वजह से भारत वर्ष विश्वगुरू के रूप में सुप्रतिष्ठित था
-आज हम हिंदुओं के अंदर गौरव भरने वाली वो गौरव गाथा सुनाएंगे जिसके बाद हिंदुओं के अंदर की हीन भावना खत्म होगी । ये वो हीन भावना है जो बहुत लंबे समय से चली आ रही गुलामी की वजह से हिंदुओं के मन में घर कर गई है ।
-अगर किसी शेर को बकरियों के साथ पाला जाए और ये सिखा दिया जाए कि वो तो बकरी ही है तो शेर भी बकरी के समान ही मिमियाना सीख जाएगा । लेकिन इस लेख की दहाड़ के बाद हिंदुओं को ये अहसास होगा कि उनका बकरियों से कोई लेना देना नहीं है... वो शेर हैं जिन्होंने दुनिया के कई देशों को युद्ध की भी ट्रेनिंग दी है
- ये घटना आज से करीब 1500 साल पहले की है... जब चीन में लियु नाम के एक राजवंश का राज चल रहा था । पांचवी शताब्दी का दौर था । ये वो वक्त था जब वाकई में हिंदी चीनी भाई भाई हुआ करते थे । या यूं कहें कि भाई से भी बड़ा पद भारत वर्ष का था क्योंकि चीन के राजा भारत के साधु संतों और विद्वानों को अपना गुरु मानकर चीन में आमंत्रित करते थे । चीन के राजाओं का मकसद था कि ज्ञान की भूमि भारत से आए हुए संत और विद्वान चीन में आकर ज्ञान का प्रचार और प्रसार करें ताकी उनके नागरिकों को भी कुछ समझ आए ।
-इसी क्रम में बुद्धभद्र नाम के एक बौद्ध साधु को चीन के राजा ने बुलाया । बुद्धभद्र की सेवा में चीन के सैनिक लगा दिए गए और चीन के लोगों को बुद्धभद्र अपनी शिक्षा देने लगे । उनका मुख्य काम संस्कृत के ग्रंथों का चाइनीज भाषा में अनुवाद करवाना था ।
-आज जो शाउलिन टेंपल पूरी दुनिया में कुंफू के लिए प्रसिद्ध है वो मूल रूप से एक अनुवाद करने का स्थल था जिसकी स्थापना का श्रेय भारत के साधु बुद्धभद्र को है । उसी मंदिर में बुद्धभद्र ने अपने प्राणों का त्याग किया ।
-उनके छूटे हुए काम को आगे बढ़ाने के लिए भारत से एक और बौद्ध साधु उसी शाउलिन टेंपल में आए जिनका नाम था बोधि धर्मा । दरअसल यही बोधिधर्मा... कुंफू... ताइक्वांडो और कराटे के जनक हैं । अंग्रेजी में कहें तो द फादर ऑफ कुंफू ताइक्वांडो और कराटे इज बोधिधर्मा ।
-शाउलिन टेंपल उस वक्त हेनान के एक जंगल में मौजूद था और जंगल के अंदर बहुत सारे चोर डाकू और लुटेरे मौजूद थे जो चीन के साधुओं और सैनिकों पर हावी थे । ये डकैत चाइनीज साधु संतों को मारपीट कर तंग करते थे और कई बार उनकी हत्या भी कर देते थे ।
- तब बोधिधर्मा ने कहा कि अनुवाद तो बाद में करेंगे पहले तुमको युद्धविद्या सिखाएंगे । इस तरह बोधि धर्मा ने चीन के साधुओं और सैनिकों को योग पर आधारित एक युद्ध विद्या सिखाई । इसी युद्ध विद्या को चीन में कुंफू या शाउलिन कुंफू कहा गया ।
(नोट- मेरे कई मित्र ऐसे हैं जिन्होंने मेरा नंबर 7011795136 को दिलीप नाम से सेव तो कर लिया है लेकिन मिस्ड कॉल नहीं की है... जो मित्र मुझे मिस्ड कॉल भी करेंगे और मेरा नंबर भी सेव करेंगे... यानी ये दोनों काम करेंगे सिर्फ उनको ही मेरे लेख सीधे व्हाट्सएप पर मिल पाएंगे...क्योंकि मैं ब्रॉडकास्ट लिस्ट से ही मैसेज भेजता हूं और इसमें मैसेज उन्हीं को मिलेगा जिन्होंने मेरा नंबर सेव किया होगा... एक और बात जिन लोगों को मेरे लेख व्हाट्सएप पर पहले से मिल रहे हैं वो मिस्ड कॉल ना करें... प्रार्थना है)
-ये तथ्य दुनिया के प्रसिद्ध हवाई प्रेस द्वारा प्रकाशित किताब द शाउलिन मोनेस्ट्री से लिए गए हैं यानी ये बात खुद विश्व कह रहा है कि चीन को कुंफू की युद्ध विद्या भारत के एक साधु बोधि धर्मा ने सिखाई । लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि आज 70 साल बीत जाने के बाद भी ये बाद भारत सरकार अपने स्कूलों में बच्चों को नहीं बता सकी है ।
- यही कुंफू विद्या जब जापान पहुंची तो इसे जापानियों ने कराटे कहा और कोरिया द्वीप मे जब यही युद्धविद्या पहुंची तो कोरिया के लोगों ने इसे ताइक्वांडो कहा । यानी इन तीनों ही युद्धविद्याओं के जनक मूल रूप से भारत के ही साधु थे लेकिन भारत के लोगों को अपनी ही महानता का आभास नहीं है ।
-ये बहुत दुख की बात है कि महान सनातन और हिंदू संस्कृति जिसने आधे एशिया को युद्ध की विद्या सिखाई है वो खुद आज युद्ध से विमुख होकर अहिंसक हो चुका है और अपने विनाश को निमंत्रित कर रहा है ।
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