पुरानी पेंशन बहाली आपकी सुरक्षित नौकरी की पहली गारंटी है।शिक्षक कर्मचारियों में छटनी की गाज केवल 50 वालों पर गिरेगी, ये सोचकर आज चुप बैठने वाले युवा साथी बहोत बड़ी गलती करेंगे.. पढ़ें पूरी पोस्ट।
जो आज या आने वाले 4-5 वर्षों में 50 की आयु पार करेंगे वे या तो पुरानी पेंशन और GPF से आच्छादित है या मेरी तरह 15-20 साल की सेवा पूरी कर चुके होंगे, उनका नुकसान जरूर होगा पर युवाओं से कम........ ।
50 साल वाले की छटनी के बाद सरकार रुक जायेगी.......?
बिलकुल नही.....
सरकार ने निजीकरण का मूड बना लिया है, अब या तो कर्मचारी निपटेगा या मौजूदा सरकार को ही निपटाना होगा।
50 की छटनी के बाद
गंभीर रोग वालों की छटनी,
फिर मधुमेह और रक्तचाप वालों की छटनी,
फिर शारीरिक रूप से विकलांग की छटनी,
फिर कम संख्या वाले स्कूलों के स्टाफ की छटनी,
फिर ज्यादा स्टाफ वाले स्कूल में से अतिरिक्त की छटनी,
फिर जिन पर विभागीय कार्यवाही हुई है उनकी छटनी,
फिर जिनका प्रेरणा लक्ष्य पूरा नहीं है उनकी छटनी
फिर कोई और बहाना......
निजी क्षेत्र NGO का मुखौटा पहनकर सरकारी स्कूलों में घुसते जायेंगे और शिक्षक छटनी के नाम पर चटनी बनता जायेगा।
जरा सोचिए, मंथन कीजिएगा कितनी तैयारी करने के बाद एक सम्मानजनक वेतन वाली नौकरी मिली है , इसी नौकरी के बलबूते पर शादी कर ली, परिवार बढाया, लोन भी ले लिया और अगर 4-6 साल बाद ये नौकरी ही नहीं रही.... तब....
किसको कोसेंगें.......
संगठनों को..... शिक्षक कर्मचारी नेताओं को...... या खुदको.......? और कोसने से होगा क्या...?
आज एयर इंडिया, आडिनेन्स फैक्ट्री, बीएसएनएल जैसी दर्जनों कंपनीयों के कर्मचारी यही कोसने का काम कर रहें हैं, जब अपनी नौकरी पर बन आई है तब धूप हो बारिस जगह जगह धरना दे रहे हैं पर अब उनके लिए संघर्ष और कठिन हो गया है, क्योंकि की अब उनकी संस्था को बेच दिया गया है, अब उनका मालिक कोई उद्योगपति है जिस पर कंपनी के नियम लागू होते हैं।
हमको आने वाले इस भयानक कल की आहट नहीं शोर सुनाई दे रहा है, पर हम लीड लगाकर मधुर संगीत सुन रहें हैं और ये दिवास्वप्न देख रहें हैं कि यह बुरा सपना गुज़र जायेगा।
ये कोई सपना नहीं है........ गूगल पर मनोरंजन के सिवा सरकारी संस्थानों के निजीकरण और बरबादी पर भी सर्च करा कीजिये, मध्यप्रदेश और गुजरात में हजारों नहीं लाखों स्कूल बंद करने का निर्णय लिया जा चुका है.......!
अगर हमने आज से अपनी नौकरी के लिए लडना शुरू नहीं किया तो कल मुझे या आपको 10,000 - 12000 हजार की नौकरी भी नहीं मिलेगी, ये हकीकत है, हमारे घरों में भी ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट भाई बहन बेटे बेटियां हैं जिनको कोई प्राईवेट नौकरी भी नहीं मिल रही है......
नौकरी की लड़ाई और पुरानी पेंशन की लड़ाई एक है या अलग......?
सरकार निजीकरण क्यों कर रही है..? ताकि उसे कर्मचारी को वेतन न देना पडे और भविष्य में निजीकरण के बाद शिक्षा बजट को निजी कंपनियों को अनुदान के रूप में देकर उसे उसमें से कमीशन मिलेगा.....!
अब आप यदि संघर्ष का रास्ता आज ही पकड लेतें हैं और अपनी नौकरी की कसम खाकर प्रतिदिन उसी दिशा में सोचतें हैं, लिखते हैं, बोलते हैं तो क्या होगा......
आपकी आवाज, आपका विरोध, आपका जोश सभी संगठनों को एकजुट होने पर मजबूर कर देगा.. कुछ संगठन नहीं भी आये तो कोई बात नहीं... पर सभी शिक्षक कर्मचारी तो एक हो ही जायेगा, आपकी यह एकता सरकार को चिंतित करने के लिए पर्याप्त है।
पुरानी पेंशन बहाली आपकी सुरक्षित नौकरी की पहली गारंटी है, आज 80 लाख से अधिक नियमित सरकारी कर्मचारी देश की सेवा कर रहें हैं यदि ये सभी पुरानी पेंशन से आच्छादित हो गये तो क्या सरकार 80 लाख कर्मचारियों को 50 साल या उससे पहले सेवानिवृत्त कर घर बैठे एक लम्बी अवधि तक पेंशन देगी...! नहीं.... वह इन कर्मचारियों से 60 साल तक जमकर काम लेगी......!
अपने बुढापे, आने वाली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित करने के साथ साथ अपनी सरकारी नौकरी बचाने के लिए और निजीकरण को रोकने के लिए भी 22 अक्टूबर को जिला मुख्यालयों पर nps निजीकरण भारत छोडो पदयात्रा एक महत्वपूर्ण पडाव है
21 नवम्बर को इको गार्डन की महारैली भी उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश के शिक्षकों कर्मचारियों के लिए मील का पत्थर साबित होगी....
क्या होगा एक दिन के आंदोलन/रैली से.....?
31 मार्च 2005 को पुरानी पेंशन खतम कर दी गई...एक ही दिन में।
1 अप्रैल 2005 को NPS का अभिशाप पूरे प्रदेश को दिया गया.... एक ही दिन में।
सरकार ने सरकारी जयचंदो के दम पर षड्यंत्र कर शिक्षक कर्मचारी के अंदर की उम्मीद को खतम करने का प्रयास किया... एक ही दिन में।
संघर्ष निरंतर जारी रहता है, एक के बाद एक, चरणबद्ध तरीके से पर निर्णायक सफलता मिलती है.... एक ही दिन में।
अटेवा/NMOPS ने दिल्ली सरकार से पुरानी पेंशन का प्रस्ताव पारित करवाया... एक ही दिन में।
सफलता आपको भी एक दिन में ही मिलेगी पर वो दिन कौन सा होगा ये मैं या आप अकेले नहीं तय कर सकते...! जिस दिन हम सब मिलकर पूरे मन से तय कर लेंगे की हमे आज के दिन को ही अपना विजय दिवस बनाना है उसी दिन आपकी विजय हो जायेगी।
संघर्ष के लिए अटेवा- पेंशन बचाओ मंच ही क्यों...? दूसरे संगठन क्यों नहीं ?
यदि किसी शिक्षक, कर्मचारी या संगठन के पदाधिकारी के मन में यह प्रश्न है तो उसका यह प्रश्न ही गलत ❌ है।क्योंकि यह एक मंच है सभी का।
क्या है अटेवा - पुरानी पेंशन बहाली मंच....?
अटेवा किसी एक विभाग या सभी विभागों का संयुक्त संगठन नहीं है, अटेवा प्रदेश और देश के सैंकड़ों संगठनों के लिए एक सूत्र है जिससे वे सभी पुरानी पेंशन के लिए एक मंच पर संगठित हो सके.....।
शिक्षक कर्मचारी संगठनों के इतने बडे एकीकरण का कोई निकटतम उदाहरण और भी है किसी के संज्ञान में...!
अटेवा शिक्षक/ कर्मचारी/ अधिकारी और देशहित से जुड़े केवल 1 परंतु अतिमहत्वपूर्ण और व्यापक मुद्दे पुरानी पेंशन के लिए पूरे देश के कर्मचारियों को एक डोर में बांधने में काफी हद तक सफल हुआ है इस सफलता को हम सभी मिलकर 100% तक ले जा सकतें हैं।
अटेवा के लिए संगठन का नाम, बैनर, पोस्टर, पद, प्रतिष्ठा और श्रेय लेने की होड़ से भी बड़ा है मुद्दा.... मुद्दा पुरानी पेंशन बहाली का।
इस लिए बड़ी उदारता और विनम्रता से अटेवा ने प्रदेश से शुरू कर जनपद और ब्लॉक तक न केवल शिक्षक कर्मचारी और अधिकारी परंतु सभी संगठनों से आगे बढकर एक होने की अपील की है न अटेवा की कोई शर्त है और न अन्य संगठनों की कोई शर्त...! है तो केवल एक मुद्दा, एक नारा, एक लक्ष्य, एक जुनून पुरानी पेंशन बहाल करो।
22 अक्टूबर निकट है परंतु 21 नवम्बर में अभी समय है, रोज सोचिये अपने स्कूल, आफिस में अन्य साथियों से बात करिये, अपने परिवार में भी इस विषय पर गंभीरता से चर्चा कीजिये।
निर्णय भी आपका होगा।
परिणाम भी आपका होगा।
आनेवाला सुखद या दुखद कल भी आपका होगा।
उस कल का संपूर्ण दायित्व भी आपका होगा।
निवेदक:
अनुपम आनन्द
जिला कोषाध्यक्ष, अटेवा - उन्नाव
मण्डलीय कार्यक्रम प्रभारी, लखनऊ मण्डल
9918468436
(इस मैसेज को रोज जितना भी हो सके शेयर करें और आने वाले संघर्ष के लिए खुदको तैयार करें, संघर्ष का कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है, आज नहीं तो कल आपको संघर्ष करना ही पडेगा)
From OPS मंच
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