कहानी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
कहानी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

3 नवंबर 2021

मास्साब का स्कूटर एक अद्भुत कथा।

मास्साब का स्कूटर एक अद्भुत कथा।

कहानी


एक बार की बात है,

प्रवीण भारती जी, पेशे से प्राइमरी अध्यापक थे। 


कस्बे से विद्यालय की दूरी 7 किलोमीटर थी।


 एकदम वीराने में था उनका विद्यालय।


 कस्बे से वहाँ तक पहुंचने का साधन यदा कदा ही मिलता था, तो अक्सर लिफ्ट मांगके ही काम चलाना पड़ता था और न मिले तो प्रभु के दिये दो पैर, भला किस दिन काम आएंगे। 


"कैसे उजड्ड वीराने में विद्यालय खोल धरा है सरकार ने, इससे भला तो चुंगी पर परचून की दुकान खोल लो।"

 लिफ्ट मांगते, साधन तलाशते प्रवीण जी रोज यही सोचा करते। 😪😪


धीरे धीरे कुछ जमापूंजी इकठ्ठा कर, उन्होंने एक स्कूटर ले लिया।


 चेतक का नया चमचमाता स्कूटर।


 स्कूटर लेने के साथ ही उन्होंने एक प्रण लिया कि वो कभी किसी को लिफ्ट को मना न करेंगें।।


 आखिर वो जानते थे जब कोई लिफ्ट को मना करे तो कितनी शर्मिंदगी महसूस होती है। 🛵😇


अब प्रवीण जी रोज अपने चमचमाते स्कूटर से विद्यालय जाते, और रोज कोई न कोई उनके साथ जाता। लौटते में भी कोई न कोई मिल ही जाता।🛵👬


एक रोज लौटते वक्त एक व्यक्ति परेशान सा लिफ्ट के लिये हाथ फैलाये था, , अपनी आदत अनुसार प्रवीण जी ने स्कूटर रोक दिया। वह व्यक्ति पीछे बैठ गया। 🛵👬


थोड़ा आगे चलते ही उस व्यक्ति ने छुरा निकाल प्रवीण जी की पीठ पर लगा दिया। 🕵🏽‍♂️🔪


"जितना रुपया है वो, और ये स्कूटर मेरे हवाले करो।" व्यक्ति बोला। 🕵🏽‍♂️🔪💵🛵


प्रवीण जी की सिट्टी पिट्टी गुम, डर के मारे स्कूटर रोक दिया। पैसे तो पास में ज्यादा थे नहीं, पर प्राणों से प्यारा, पाई पाई जोड़ कर खरीदा स्कूटर तो था। 😪😓


 "एक निवेदन है," स्कूटर की चाभी देते हुए प्रवीण जी बोले । 😇


"क्या?" वह व्यक्ति बोला। 🧐


"यह कि तुम कभी किसी को ये मत बताना कि ये स्कूटर तुमने कहाँ से और कैसे चोरी किया, विश्वास मानो मैं भी रपट नहीं लिखाउँगा।" प्रवीण जी बोले। 😇


"क्यों?" व्यक्ति हैरानी से बोला। 🧐


"यह रास्ता बहुत उजड्ड है, निरा वीरान | सवारी मिलती नहीं, उस पर ऐसे हादसे सुन आदमी लिफ्ट देना भी छोड़ देगा।"  प्रवीण जी बोले।😪


व्यक्ति का दिल पसीजा, उसे प्रवीण जी भले मानुष प्रतीत हुए, पर पेट तो पेट होता है। 'ठीक है कहकर' वह व्यक्ति स्कूटर ले उड़ा। 🛵💨




अगले दिन प्रवीण जी सुबह सुबह अखबार उठाने दरवाजे पर आए, दरबाजा खोला तो स्कूटर सामने खड़ा था। प्रवीण जी की खुशी का ठिकाना न रहा, दौड़ कर गए और अपने स्कूटर को बच्चे जैसा खिलाने लगे, देखा तो उसमें एक कागज भी लगा था।🛵📝


 "मास्साब, यह मत समझना कि तुम्हारी बातें सुन मेरा हृदय पिघल गया। 😏


कल मैं तुमसे स्कूटर लूट उसे कस्बे ले गया, सोचा भंगार वाले के पास बेच दूँ।

"अरे ये तो मास्साब का स्कूटर है। 🤨" इससे पहले मैं कुछ कहता भंगार वाला बोला। 


"अरे, मास्साब ने मुझे बाजार कुछ काम से भेजा है।" कहकर मैं बाल बाल बचा। परन्तु शायद उस व्यक्ति को मुझ पर शक सा हो गया था। 🛵👀🏃‍♂️


फिर मैं एक हलवाई की दुकान गया, जोरदार भूख लगी थी तो कुछ सामान ले लिया। "अरे ये तो मास्साब का स्कूटर है।🤨" वो हलवाई भी बोल पड़ा। "हाँ, उन्हीं के लिये तो ये सामान ले रहा हूँ, घर में कुछ मेहमान आये हुए हैं।" कहकर मैं जैसे तैसे वहां से भी बचा। 🛵👀🏃‍♂️


फिर मैंने सोचा कस्बे से बाहर जाकर कहीं इसे बेचता हूँ। शहर के नाके पर एक पुलिस वाले ने मुझे पकड़ लिया।👮🏽‍♂️


"कहाँ, जा रहे हो और ये मास्साब का स्कूटर तुम्हारे पास कैसे।🤨" वह मुझ पर गुर्राया। किसी तरह उससे भी बहाना बनाया। 🛵👀🏃‍♂️💨


हे, मास्साब तुम्हारा यह स्कूटर है या आमिताभ बच्चन। सब इसे पहचानते हैं। 😪 आपकी अमानत मैं आपके हवाले कर रहा हूँ, इसे बेचने की न मुझमें शक्ति बची है न हौसला। आपको जो तकलीफ हुई उस एवज में स्कूटर का टैंक फुल करा दिया है।🙁"


पत्र पढ़ प्रवीण जी मुस्कुरा दिए, और बोले। "कर भला तो हो भला।" 😄 😜


💐🍱आप सभी देवियों और सज्जनों को सपरिवार प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 💐🍱

🙏🙏🙏

दीपावली पर्व की हार्दिक बधाई

🙏🏻 ।


नोट -

एक काल्पनिक कथा 

साभार सोशल मीडिया

24 मई 2021

शनि का नाम शनैश्चर क्यों ? पीपल वृक्ष की पूजा क्यों होती है ?Why Shani is named Shanashcher? Why is the Peepal Tree Worshiped?

शनि का नाम शनैश्चर क्यों ? पीपल वृक्ष की  पूजा क्यों होती है ?जानिए इस पोस्ट में।


महर्षि दधीचि का नाम कौन नहीं जानता है ? महर्षि दधीचि द्वारा देह दान की कथा किसने नहीं सुनी या पढ़ी होगी ? 

किन्तु क्या आप जानते हैं कि जब महर्षि ने अपनी देह दान दिया था तो उनकी उम्र कितनी थी या उनकी पत्नी की उम्र कितने वर्ष थी और उनके कोई संतान थी या नहीं ?यदि नहीं तो आइए पुराणों से छानकर प्रस्तुत एक बेहद त्याग और तपभरी कथा का अनुश्रवण करें-
   
 देवासुर संग्राम में असुरों के नायक वृत्तासुर के आगे असहाय देवों को जब ज्ञात हुआ कि यदि महर्षि दधीचि की अस्थियों का अस्त्र(वज्र) बनाकर असुरराज पर प्रहार किया जाएगा तो उसका विनाश तय है तब देवेंद्र स्वयम् महर्षि दधीचि के सम्मुख देह दान करने की याचना लेकर गए।

उस समय महर्षि दधीचि की उम्र मात्र 31 वर्ष और उनकी धर्मपत्नी की उम्र 27 वर्ष तथा गोद में नवजात बच्चे की उम्र मात्र 3 वर्ष थी। देवेंद्र इन्द्र की याचना और देवताओं पर आए संकट के निवारण हेतु महर्षि दधीचि देह दान हेतु तैयार हो गए तथा अपने प्राण योगबल से त्याग दिए।देवताओं ने उनकी अस्थियां निकाल कर मांसपिंड को उनकी पत्नी को दाह हेतु दे दिया।

श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। 

इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक कि जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।


एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ।

तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि  हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की उम्र में ही हो गयी थी।

बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।

इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।

नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।

ब्रह्मा जी से वर मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए।

 सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-

1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।

2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
 
  ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को  अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।

सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का अकूत भंडार है।

Why Shani is named Shanashcher? Why is the Peepal Tree Worshiped?

Who does not know the name of Maharishi Dadhichi? Who would not have heard or read the story of body donation by Maharishi Dadhichi?

But do you know that when Maharishi donated his body, how old was his age or how old was his wife and if he had any children? Monitor-
   
 When the helpless gods in front of the Asuras hero Vrittasur in Devasur Sangram came to know that if Maharishi Dadhichi's ashes were attacked by making a weapon (Vajra), his destruction is certain, then Devendra himself took the request to donate the body in front of Maharishi Dadhichi. went.

At that time, Maharishi Dadhichi's age was only 31 years and his wife's age was 27 years and the newborn baby's age in the lap was only 3 years. Maharishi Dadhichi agreed to donate the body for the solicitation of Devendra Indra and the distress faced by the gods and gave up his life with the power of yoga. The gods removed his bones and gave the meatpit to his wife.

When the cremation of Maharishi Dadhichi's crematorium was being cremated in the crematorium, his wife could not bear the disconnection of her husband and sat in a funeral pyre by keeping a 3-year-old boy in a large peepal tree cotter nearby.

In this way Maharishi Dadhichi and his wife were sacrificed, but the boy kept in Peepal's Kotar began to shout with hunger and thirst. When no object was found, he started growing big by eating Peepal's laps (fruits) which fell in the Kotar. Later, the life of the child was safe by eating peepal leaves and fruits.

One day Devarshi Narada passed by there. Narada looking at the boy in Peepal's coter asked him to introduce-
Narada - child, who are you?
Boy - This is what I want to know too.
Narada - Who is your father?
Boy - This is what I want to know.

Narada then noticed, and Narada was surprised to say that, O child! You are the son of the great donor Maharishi Dadhichi. The gods had conquered the asuras by making a thunderbolt from your father's ashes. Narada told that your father Dadhichi had died only at the age of 31.

Child - What was the reason for my father's premature death?
Narada - Shani was Mahadasha of your father.
Boy - What was the reason for the misfortune that came over me?
Narada - Mahadasha of Shanidev.

After saying this, Devarshi Narada named Piplad, who lived by eating peepal leaves and lakes, and initiated him.

After Narada's departure, the boy Piplad pleased Brahma with great penance as told by Narada. When Brahma ji asked the boy Piplad to ask for a bride, Piplad asked for the power to burn any thing with his eyes.

Upon meeting the groom from Brahma Ji, Pippalad first offered Shani Dev before him and opened his eyes and started incinerating him. Shanidev started burning. There was uproar in the universe. All the gods failed to protect Suryaputra Shani.

 Seeing his son burning in front of his eyes, Sun also pleaded to save him from Brahma. Finally, Brahma Ji himself appeared in front of Pippalad and said to leave Shanidev but Piplad was not ready. Said to ask. Then Piplad was happy and asked for the following two boons -

1- Saturn will not have any place in the horoscope of any child from birth to 5 years, so that no other child is orphaned like me.

2- The Peepal tree has given me shelter for the orphan. Therefore, whoever offers water on the Peepal tree before sunrise will not be affected by the Mahadasha of Saturn.
 
  Brahma ji gave a boon saying Aastastu. Then Piplad freed them by striking the burning Saturn on his feet with his brahmandand. Due to which Shani Dev's feet were damaged and he was not able to walk as fast as before. Hence since then Shani is "Shanai: charati ya: shanascher:" that is, the one who moves slowly is called shanascher, and the black body due to the burning in Saturn fire. Those organs became dislocated.

Presently, it is for the religious purpose of worshiping the black idol of Shani and the Peepal tree. Later Pippalad composed the Question Upanishad, which is still a tremendous store of knowledge.

9 मई 2021

कहानी मानवता और इंसानियत का एक सबक एक कहानी।

कहानी मानवता और इंसानियत का एक सबक एक कहानी।

वासु भाई और वीणा बेन गुजरात के एक शहर में रहते हैं। आज दोनों यात्रा की तैयारी कर रहे थे। 3 दिन का अवकाश था वे पेशे से चिकित्सक थे ।लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे ।परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता ,छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं ।


        आज उनका इंदौर - उज्जैन जाने का विचार था । दोनों साथ-साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे, वहीं पर प्रेम अंकुरित हुआ ,और बढ़ते - बढ़ते वृक्ष बना। दोनों ने परिवार की स्वीकृति से विवाह किया  । 2 साल हो गए ,संतान कोई थी नहीं ,इसलिए यात्रा का आनंद लेते रहते थे ।


            विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया , बैंक से लोन लिया ।वीणा  बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई  डाक्टर  आफ मेडिसिन थे ।इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था ।


            आज इंदौर जाने का कार्यक्रम बनाया था । जब  मेडिकल कॉलेज में पढ़ते थे वासु भाई ने  इंदौर के बारे में बहुत सुना था । नई नई  वस्तु है। खाने के शौकीन थे । इंदौर के सराफा बाजार और 56 दुकान  पर मिलने वाली मिठाईयां नमकीन के बारे में भी सुना था, साथ ही  महाकाल के दर्शन करने की इच्छा थी इसलिए उन्होंने इस बार  इंदौर उज्जैन  की यात्रा करने का  विचार किया था ।


            यात्रा पर रवाना हुए ,आकाश में बादल घुमड़ रहे थे । मध्य प्रदेश की सीमा लगभग 200 किलोमीटर दूर थी। बारिश होने लगी थी।

म.प्र.  सीमा से  40 किलोमीटर पहले छोटा शहर  पार  करने में समय लगा। कीचड़ और भारी यातायात में बड़ी कठिनाई से दोनों ने रास्ता पार किया।

भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था । परंतु चाय का समय हो गया था ।उस छोटे शहर से चार 5 किलोमीटर आगे निकले ।सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया ।जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे ।उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है । वासु भाई ने वहां पर गाड़ी रोकी,  दुकान पर गए , कोई नहीं था ।आवाज लगाई , अंदर से एक महिला  निकल कर के आई। 

उसने पूछा क्या चाहिए ,भाई  ?

           वासु  भाई ने दो पैकेट वेफर्स  के लिए ,और कहा  बेन   दो कप चाय बना देना ।थोड़ी जल्दी बना देना , हमको दूर जाना है  । 

 पैकेट लेकर के गाड़ी में गए ।वीणा  बेन और दोनों ने पैकेट के वैफर्स  का नाश्ता किया ।

 चाय अभी तक  आई नहीं थी ।

               दोनों कार से निकल कर के दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे ।वासु भाई ने फिर आवाज लगाई ।


            थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई ।बोली -भाई बाड़े में तुलसी लेने गई थी , तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई ,अब चाय बन रही है ।

थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मैले से कप ले  करके वह गरमा गरम चाय लाई। 

            मैले कप को देखकर वासु भाई एकदम से  अपसेट  हो गए ,और कुछ बोलना चाहते थे ।परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उनको रोक दिया  ।


           चाय के कप उठाए  ।उसमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी ।दोनों ने चाय का एक  सिप  लिया  । ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी ।उनके मन की  हिचकिचाहट दूर हो गई।

उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा कितने पैसे ?

महिला ने कहा - बीस रुपये 

वासु भाई ने सौ का नोट दिया ।

          महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है । ₹. 20 छुट्टा दे दो  ।वासुभाई ने बीस रु  का नोट दिया। महिला ने सौ का नोट वापस किया। 

वासु भाई ने  कहा कि हमने तो वैफर्स  के पैकेट भी लिए हैं !

           महिला बोली यह पैसे  उसी के हैं ।चाय के पैसे नहीं लिए ।

अरे चाय के पैसे क्यों  नहीं लिए ?

जवाब मिला ,हम चाय नहीं बेंचते हैं।  यह होटल नहीं है  ।

-फिर आपने चाय क्यों बना दी ?

- अतिथि आए ,आपने चाय मांगी ,हमारे पास दूध भी नहीं था । यह बच्चे के लिए दूध रखा था ,परंतु आपको मना कैसे करते ।इसलिए इसके दूध की चाय बना दी ।

-अभी बच्चे को क्या पिलाओगे ?

-एक दिन दूध नहीं पिएगा तो मर नहीं जाएगा । इसके पापा बीमार हैं  वह  शहर जा  करके दूध ले आते ,पर उनको कल से बुखार है ।आज अगर ठीक  हो  जाएगे तो कल सुबह जाकर दूध  ले आएंगे। 


            वासु भाई  उसकी बात सुनकर  सन्न  रह गये। इस महिला ने होटल ना होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी और वह भी  केवल इसलिए कि मैंने कहा था ,अतिथि रूप में आकर के  ।

 संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे हैं ।

            उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं ,आपके पति कहां हैं बताएं ।महिला उनको  भीतर ले गई  । अंदर गरीबी  पसरी  हुई थी ।एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे । बहुत दुबले पतले थे ।

           वासु  भाई ने जाकर उनका मस्तक संभाला ।माथा  और हाथ गर्म हो रहे थे ,और कांप  रहे थे  वासु  भाई वापस गाड़ी में , गए दवाई का अपना बैग लेकर के आए । उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर के दी , खिलाई  ।

फिर कहा- कि इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा ।

              मैं पीछे शहर में जा कर के और इंजेक्शन और इनके लिए बोतल ले आता हूं ।वीणा बेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने का कहा ।

 गाड़ी लेकर के गए ,आधे घंटे में शहर से बोतल ,इंजेक्शन ,ले कर के आए और साथ में दूध की थैलीयां  भी लेकरआये। 

             मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई ,और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं ही बैठे रहे ।

एक बार और तुलसी और अदरक की चाय बनी ।

दोनों ने  चाय पी और उसकी तारीफ की। 

जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुए,  तब वह दोनों  वहां से आगे बढ़े। 


           3 दिन इंदौर उज्जैन में रहकर , जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने ,और दूध की थैली लेकर के आए ।

           वापस उस दुकान के सामने रुके ,महिला को आवाज लगाई , तो  दोनों  बाहर निकल कर  उनको देख कर बहुत  खुश  हो गये। 

उन्होंने कहा कि आप की दवाई से दूसरे दिन  ही बिल्कुल स्वस्थ हो गया ।

वासु भाई ने बच्चे को खिलोने दिए  ।दूध के पैकेट दिए  । फिर से चाय बनी, बातचीत हुई ,अपनापन स्थापित हुआ। वासु भाई ने अपना एड्रेस कार्ड  दिया  ।कहा, जब भी आओ जरूर मिले ,और दोनों वहां से अपने शहर की ओर ,लौट गये ।


                शहर पहुंचकर वासु भाई  ने उस महिला  की बात याद रखी। फिर  एक फैसला लिया। 


             अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि ,अब आगे से आप जो भी मरीज आयें, केवल उसका नाम लिखेंगे ,फीस नहीं लेंगे ।फीस मैं खुद लूंगा। 


                और जब मरीज आते तो  अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस  लेना बंद कर दिया ।

केवल संपन्न मरीज  देखते  तो ही उनसे फीस लेते ।

             धीरे धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई  ।  दूसरे डाक्टरों ने सुना  ।उन्हें लगा कि इस कारण से हमारी प्रैक्टिस कम हो जाएगी ,और लोग हमारी निंदा करेंगे । उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा  ।

 एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ वासु भाई से मिलने आए ,उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो ?

              तब वासु भाई ने  जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी उद्वेलित हो गया ।

वासु भाई ने कहा कि मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मेरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा ।एमबीबीएस में भी ,एमडी में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना ,परंतु सभ्यता संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है ,वह मुझसे आगे निकल गयी। तो मैं अब पीछे कैसे रहूं? 


इसलिए मैं अतिथि सेवा में मानव सेवा में भी गोल्ड मेडलिस्ट बनूंगा । इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की । और मैं यह कहता हूं कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का है। सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा भावना से काम करें ।गरीबों की निशुल्क सेवा करें ,उपचार करें ।यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं ।

परमात्मा ने मानव सेवा का अवसर प्रदान किया है ,

               एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासु भाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर के चिकित्सकीय  सेवा करुंगा।


कभी कभार ऐसी पोस्ट भी सोशल मीडिया पर आ जाती हैं। और फॉरवर्ड करने को मजबूर कर देती हैं।

🙏🙏🙏🙏🙏.🙏...


Lesson of humanity and humanity



Vasu Bhai and Veena Ben live in a city in Gujarat. Today both were preparing for the trip. There was a 3-day holiday. He was a doctor by profession. He could not take a long leave. But whenever he got a leave of two to three days, he went somewhere on a short journey.




        Today he had the idea of ​​going to Indore - Ujjain. Both studied together in medical college, where love sprouted, and grew trees. Both married with the family's approval. It has been 2 years, there was no child, so we used to enjoy the journey.




            After marriage, the two decided to open their own private hospital, took a loan from the bank. Veena Ben was a gynecologist and Vasu Bhai, a doctor of medicine. So the hospital was doing well due to the skill of both.




            Had planned to go to Indore today. Vasu Bhai had heard a lot about Indore when he was studying in a medical college. New is a new item. Was fond of food. He had also heard about Namkeen, the sweets found at Sarafa Bazar and 56 shops in Indore, as well as the desire to visit Mahakal, so he thought to visit Indore Ujjain this time.




            Departed on a journey, clouds were rolling in the sky. The border of Madhya Pradesh was about 200 kilometers away. It started raining.


M.P. It took time to cross the small town 40 kilometers before the border. Both crossed the path with great difficulty in mud and heavy traffic.


The idea was to go to Madhya Pradesh for food. But it was time for tea. It took four 5 kilometers ahead of the small town. A small house appeared on the side of the road, next to which wafers packets were hanging. They thought it was a hotel. Vasu Bhai stopped the car there, went to the shop, there was no one.


What did he want, brother?


           Vasu bhai for two packet wafers, and said ben make two cups of tea. Make a little quick, we have to go away.


 Veena Ben and both had breakfast of packet wafers.


 The tea had not arrived yet.


               Both got out of the car and sat on the chairs kept in the shop. Vasu Bhai again made a sound.




            In a while, the woman came in. Boli - Brother had gone to take basil in the enclosure, it was late to take basil leaves, now tea is being made.


After a while, taking two cups of muddy cups in a plate, she brought the hot tea.


            Vasu Bhai was completely upset when he saw the dirty cup, and wanted to say something. But Veenaben stopped him by holding his hand.




           Picked up the cups of tea. The aroma of ginger and basil was coming out of them. Both of them took a sip of tea. For the first time in his life, he drank such a delicious and fragrant tea. His hesitation was overcome.


How much money did he ask the woman after drinking tea?


The lady said - twenty rupees


Vasu Bhai gave a note of a hundred.


          The woman said that her brother is not on leave. ₹ Give 20 leave. Vasubhai gave a note of twenty rupees. The woman returned a hundred rupee note.


Vasu Bhai said that we have also taken packets of wafers!


           The woman said that this money belonged to her. Did not take the money for the tea


Hey, why not take tea money?


The answer was found, we do not sell tea. This is not a hotel.


-Why did you make tea?


- Guest came, you asked for tea, we did not even have milk. This milk was kept for the child, but how could you refuse it, so I made tea for its milk.


-What will you feed the baby now?


- If you do not drink milk one day, you will not die. His father is ill, he would go to the city and fetch milk, but he has fever since yesterday. If he gets well today, he will go and get milk tomorrow morning.




            Vasu Bhai was stunned after listening to him. This woman made tea from her baby's milk despite not having a hotel, and that too only because I said, coming as a guest.


 Women are far ahead of me in culture and civilization.


            He said that we are both doctors, tell us where your husband is. The woman took him inside. There was poverty inside. The gentleman was sleeping on a bed. Were very thin.


           Vasu Bhai went and took care of his head. Matha and hands were getting hot, and trembling Vasu Bhai came back to the car with his bag of medicine. He took out two-three tablets and fed them.


Then he said that his disease will not be cured with these pills.


              I go back to the city and get injections and bottles for them. He told Veena Ben to sit with the patient.


 Went with a car, came to the city in half an hour by taking bottles, injections, and also carrying milk bags.


             The patient was injected, climbed the bottle, and both sat there until the bottle was in place.


Another time basil and ginger tea was made.


Both of them drank tea and praised it.


When the patient recovered a little in 2 hours, then both of them proceeded from there.




           Stayed in Ujjain for 3 days, when he returned, he brought a lot of toys and milk bags for his child.


           Stopped in front of that shop, gave voice to the lady, then both of them went out and were very happy to see them.


He said that he became completely healthy the next day with his medicine.


Vasu Bhai let the child blossom. Milk packets. Tea was made again, conversation was held,Pun set up. Vasu Bhai gave his address card. Whenever they come, they both return and go back to their hometown.




                Vasu Bhai, after reaching the city, remembered that woman. Then took a decision.




             He told the person sitting at the reception in his hospital that, from now onwards, you will write only the name of the patient, will not take the fee. I will take it myself.




                And when the patient came, if he was a poor patient, then he stopped taking fees from them.


Only the affluent patients would have taken fees from them.


             Gradually, his fame spread in the city. Other doctors listened. They felt that for this reason our practice would be reduced, and people would condemn us. He told the president of the association.


 The president of the association came to meet Dr. Vasu Bhai, he said why are you doing this?


              Then Vasu Bhai gave an answer to his heart by listening to the answer given by him.


Vasu Bhai said that I kept coming to the first position in merit in every exam in my life. Even in MBBS, MD also became Gold Medalist, but the woman of the village who is very poor in civilization and guest service is ahead of me. She left. So how do i stay behind now?




So I will also become a Gold Medalist in guest service as well as in Human Services. So I started this service. And I say that our business is of human service. I also appeal to all physicians to work with the spirit of service. Serve the poor free of cost, treat them. This business is not about earning money.


God has provided an opportunity for human service,


               The president of the association paid obeisance to Vasu Bhai and thanked him and said that I will also do medical service with the same spirit from the beginning.




 Sometimes such posts also appear on social media. And is forced to forward.



29 अप्रैल 2021

एक रूपय में ईश्वर दे दो शिक्षाप्रद लघु कहानी

एक रूपय में ईश्वर दे दो शिक्षाप्रद लघु कहानी

8 साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर पूछने लगा,

--क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?


दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया।


बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा!


-- ए लड़के.. 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो?

-- मुझे ईश्वर चाहिए। आपकी दुकान में है?


दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया।


लेकिन, उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा,


-- तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर?


पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराईं ৷ लगता है इसी दुकान पर ही ईश्वर मिलेंगे ! 

 बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया,


----इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी मां अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी मां मर गई तो मुझे कौन खिलाएगा ? डाक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारी मां को बचा सकते हैं। क्या आपकी दुकान में ईश्वर मिलेंगे?


-- हां, मिलेंगे...! कितने पैसे हैं तुम्हारे पास?


-- सिर्फ एक रूपए।


-- कोई दिक्कत नहीं है। एक रूपए में ही ईश्वर मिल सकते हैं।


दुकानदार बच्चे के हाथ से एक रूपए लेकर उसने पाया कि एक रूपए में एक गिलास पानी के अलावा बेचने के लिए और कुछ भी नहीं है। इसलिए उस बच्चे को फिल्टर से एक गिलास पानी भरकर दिया और कहा, यह पानी पिलाने से ही तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी।


अगले दिन कुछ मेडिकल स्पेशलिस्ट उस अस्पताल में गए। बच्चे की मां का आप्रेशन हुआ और बहुत जल्दी ही वह स्वस्थ हो उठीं।


डिस्चार्ज के कागज़ पर अस्पताल का बिल देखकर उस महिला के होश उड़ गए। डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन देकर कहा, "टेंशन की कोई बात नहीं है। एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं। साथ में एक चिट्ठी भी दी है"। 


महिला चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी, उसमें लिखा था-

"मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको तो स्वयं ईश्वर ने ही बचाया है ...  मैं तो सिर्फ एक ज़रिया हूं। यदि आप धन्यवाद देना ही चाहती हैं तो अपने अबोध बच्चे को दीजिए जो सिर्फ एक रूपए लेकर नासमझों की तरह ईश्वर को ढूंढने निकल पड़ा। उसके मन में यह दृढ़ विश्वास था कि एकमात्र ईश्वर ही आपको बचा सकते है। विश्वास इसी को ही कहते हैं। ईश्वर को ढूंढने के लिए करोड़ों रुपए दान करने की ज़रूरत नहीं होती, यदि मन में अटूट विश्वास हो तो वे एक रूपए में भी मिल सकते हैं।"

27 अप्रैल 2021

पत्थर का मूल्य एक कहानी दिल को दस्तक देती

पत्थर का मूल्य एक कहानी दिल को दस्तक देती ।

 यह कहानी पुराने समय की है। एक दिन एक आदमी गुरु के पास गया और उनसे कहा, 'बताइए गुरुजी, जीवन का मूल्य क्या है?'

गुरु ने उसे एक पत्थर दिया और कहा, 'जा और इस पत्थर का मूल्य पता करके आ, लेकिन ध्यान रखना पत्थर को बेचना नहीं है।' वह आदमी पत्थर को बाजार में एक संतरे वाले के पास लेकर गया और संतरे वाले को दिखाया और बोला, 'बता इसकी कीमत क्या है?'संतरे वाला चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '12 संतरे ले जा और इसे मुझे दे जा।'

वह आदमी संतरे वाले से बोला, 'गुरु ने कहा है, इसे बेचना नहीं है।' 

और आगे वह एक सब्जी वाले के पास गया और उसे पत्थर दिखाया। सब्जी वाले ने उस चमकीले पत्थर को देखा और कहा, 'एक बोरी आलू ले जा और इस पत्थर को मेरे पास छोड़ जा।' उस आदमी ने कहा, 'मुझे इसे बेचना नहीं है, मेरे गुरु ने मना किया है.

आगे एक सोना बेचने वाले सुनार के पास वह गया और उसे पत्थर दिखाया। सुनार उस चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '50 लाख में बेच दे'।

उसने मना कर दिया तो सुनार बोला, '2 करोड़ में दे दे या बता इसकी कीमत जो मांगेगा, वह दूंगा तुझे...।'

उस आदमी ने सुनार से कहा, 'मेरे गुरु ने इसे बेचने से मना किया है।' आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास वह गया और उसे पत्थर दिखाया। जौहरी ने जब उस बेशकीमती रुबी को देखा तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपड़ा बिछाया, फिर उस बेशकीमती रुबी की परिक्रमा लगाई, माथा टेका, फिर जौहरी बोला, 'कहां से लाया है ये बेशकीमती रुबी? सारी कायनात, सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती। ये तो बेशकीमती है।' 

वह आदमी हैरान-परेशान होकर सीधे गुरु के पास गया और अपनी आपबीती बताई और बोला, 'अब बताओ गुरुजी, मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?'

गुरु बोले, 'तूने पहले पत्थर को संतरे वाले को दिखाया, उसने इसकी कीमत 12 संतरे बताई। आगे सब्जी वाले के पास गया, उसने इसकी कीमत 1 बोरी आलू बताई। आगे सुनार ने 2 करोड़ बताई और जौहरी ने इसे बेशकीमती बताया।  अब ऐसे ही तेरा मानवीय मूल्य है। इसे तू 12 संतरे में बेच दे या 1 बोरी आलू में या 2 करोड़ में या फिर इसे बेशकीमती बना ले, ये तेरी सोच पर निर्भर है कि तू जीवन को किस नजर से देखता है।' 


सीख : हमें कभी भी अपनी सोच का दायरा कम नहीं होने देना चाहिए। 


A story worth the stone knocks the heart.


 This story is of old times. One day a man went to the Guru and said to him, 'Tell me Guruji, what is the value of life?'


The Guru gave him a stone and said, "Go and find out the value of this stone, but take care not to sell the stone." The man took the stone to an orange one in the market and showed it to the orange one and said, "Tell me what is the cost?" The orange one said looking at the bright stone, "Take 12 oranges and give it to me."


The man said to the orange man, "Guru has said, don't sell it."


And further he went to a vegetable man and showed him a stone. The vegetable man saw the shining stone and said, 'Take a sack potato and leave this stone with me.' The man said, 'I don't have to sell it, my master has refused.


He then went to a gold-selling goldsmith and showed him a stone. The goldsmith looking at the shining stone said, 'Sell it for 50 lakhs'.


When he refused, the goldsmith said, 'Give me 2 crores or tell me whatever you want, I will give you….'


The man said to the goldsmith, "My master has refused to sell it." He then went to a jeweler selling diamonds and showed him the stone. When the jeweler saw that prized ruby, he first laid a red cloth near Ruby, then circled the prized ruby, foreheaded, then the jeweler said, 'Where has this prized ruby ​​come from? It cannot be priced even by selling the whole work to the whole world. It is priceless. '


Surprised and upset, the man went straight to the Guru and told his personal opinion and said, 'Now tell me Guruji, what is the value of human life?'


Guru said, 'You showed the first stone to the orange person, he told its value to 12 oranges. Further went to the vegetable person, he told the price of 1 sack of potatoes. Further, the goldsmith gave 2 crores and the jeweler described it as priceless. Now you have human values ​​like this. You can sell it in 12 oranges or in 1 bag of potatoes or 2 crores or make it precious, it depends on your thinking how you look at life. '




Lesson: We should never let the scope of our thinking shrink.

 

27 अगस्त 2020

लघु कथा मै पंचिंग बैग हूं क्या?

लघु कथा मै पंचिंग बैग हूं क्या?


, मै पंचिंग बैग हूं क्या,


बेटा घर में घुसते ही बोला," मम्मी कुछ खाने को दे दो यार बहुत भूख लगी हैं। यह सुनते ही मैंने कहा," बोला था ना ले जी कुछ काँलेज, सब्जी तो बना ही रखी थी।" बेटा बोला, ' यार मम्मी अपना ज्ञान ना अपने पास रखा करो। अभी जो कहा हैं वो कर दो बस और हाँ, रात में ढंग का खाना बनाना,,,,,,, पहले ही मेरा दिन अच्छा नही गया हैं।" कमरे में गई तो उसकी आँख लग गई थी। मैंने जाकर उसको जगा दिया कि कुछ खा कर सो जाए।

      चीख कर वो मेरे ऊपर बरस गया कि जब आँख लग गई थी तो उठाया क्यों तुमने? मैंने कहा तूने ही तो कुछ बनाना को कहा था। वो बोला, मम्मी एक तो काँलेज में टेंशन ऊपर से तुम यह अजीब से काम करती हो। दिमाग लग लिया करो कभी तो,"।

          तभी घंटी बजी तो बेटी भी आ गई थी। मैंने प्यार से पूछा, आ गई मेरी बेटी कैसा था दिन?

        बैग पटक कर बोली मम्मी आज पेपर अच्छा नही हुआ"। मैंने कहा," कोई बात नही,अगली बार कर लेना"।

        मेरी बेटी चीख कर बोली, " अगली बार क्या रिजल्ट तो अभी खराब हुआ ना। मम्मी यार तुम जाओ यहाँ से तुमको कुछ नही पता"।

       मैं उसके कमरे से भी निकल गई।

       शाम को पतिदेव आए तो मुँह लाल था। थोडी बात करने की कोशिश कि तो वो भी झल्ला के बोले, यार मुझे अकेला छोड़ दो यार। पहले ही बाँस ने क्लास ले ली हैं और अब तुम शुरू हो गई।"  

       आज कितने सालों से यही सुनती आ रही थी। सबकी पंचिंग बैग मैं ही थी। हर औरत भी ना अपना इज्जत करवानी आती ही नही। 

     " मैं सबको खाना खिला कर कमरे में चली गई।"

     अगले दिन से मैंने किसी से भी पूछना बंद कर दिया। जो जैसा कहता कर के दे देती। पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती। पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा था? 

       बेटा काँलेज और बेटी स्कूल से आती तो मैं कुछ ना बोलती ना कुछ पूछती। यही सिलसिला काफी दिन चली,,,,,,,,

      संडे वाले दिन तीनो मेरे पास आए बोले तबियत ठीक हैं ना? क्या हुआ हैं इतने दिनों से चुप हो। बच्चे भी हैरान थे। थोडी देर चुप रहने के बाद मैं बोली। मैं तुम लोगों की पंचिंग बैग हूँ क्या? 

      जो आता हैं अपना गुस्सा या अपना चिडचिडापन मुझपे निकल देता हैं। मैं भी इंतजार करती हूँ तुम लोगों का पूरा दिन काम कर के अब मेरे बच्चे आएंगे, पति आएंगे दो बोल बोलेगे प्यार के और तुम लोग आते ही मुझपे पंच करना शुरू कर देते हो।

      अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नही गया तो क्या वो मेरी गलती हैं? हर बार मुझे झिडकना सही हैं?  😭😭

        कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नही हुई। तीनो चुपपे। सही तो कहा मैंने दरवाजें पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया हैं मुझे। जो आता हैं मुक्का मार के चलता बनता हैं। तीनो शर्मिदां थे।

        हर माँ , हर बीबी अपने बच्चो और पति के घर लौटने का इंतजार करती हैं। उनसे पूछती हैं कि दिन भर में सब ठीक था या नही, लेकिन कभी हम उनको ग्रांटेड ले लेते हैं। हर चीज का गुस्सा उन पर निकालते हैं। कभी कभी तो यह ठीक हैं लेकिन अगर ये अापके घरवालो की आदत बन जाए तो आप आज से ही सबका पंचिंग बैग बनाना बंद कर दे"।

    तुम!!! खुद को कम मत आँको, खुद पर गर्व करो।"

       " क्योकि तुम हो तो,

थाली में गर्म रोटी हैं।

ममता की ठंडक हैं,

प्यार की ऊष्मा हैं।

तुमसे , घर में संध्या बाती, घर हैं।

घर लौटने की इच्छा हैं,,,,

क्या बना हैं रसोई में

आज झांककर देखने की चाहत हैं।

तुमसे, पूजा की थाली हैं,

रिश्तो के अनुबंध हैं,

पडो़सी से संबंध हैं।"

सुनीता संतोष दुबे

🙏🏻🙏🏻