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25 मई 2021

राज्य अध्यापक पुरस्कार वर्ष 2020-21 हेतु ऑनलाइन आवेदन की संपूर्ण प्रक्रिया चित्र सहित पीडीएफ एवं शासनादेश में उपलब्ध है

राज्य अध्यापक पुरस्कार वर्ष 2020-21 हेतु ऑनलाइन आवेदन की संपूर्ण प्रक्रिया चित्र सहित पीडीएफ एवं शासनादेश में उपलब्ध है 



राज्य अध्यापक पुरस्कार वर्ष 2020 किस हेतु उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित परिषदीय प्राथमिक उच्च प्राथमिक विद्यालयों अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर हाई स्कूलों में कार्यरत अध्यापक अध्यापिका के चयन हेतु prerana web portal

Ke madhyam se online aavedan Patra दिनांक 16 अप्रैल 2021 से 31 मई 2021 के मध्य आमंत्रित किए जाएंगे। अब तक कुल 70 आवेदन प्राप्त किए जा चुके हैं।




 30 जनपदों से आवेदन 0 है जिसकी सूची संलग्न पीडीएफ में देख सकते हैं।


संलग्न सूची एवम शासनादेश की पीडीएफ को देखने के लिए नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें 👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇






राज्य पुरस्कार 2020-21 हेतु ऑनलाइन करने की संपूर्ण प्रक्रिया का पीडीएफ चित्र सहित 👇👇👇👇👇👇


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13 अक्टूबर 2020

अध्यापकों के जीवन का झकझोरने वाला सत्य (शिक्षक की कलम से)।

अध्यापकों के जीवन का झकझोरने वाला सत्य (शिक्षक की कलम से)।शिक्षक का छुपा हुआ दर्द जिसको समाज जानना नहीं चाहता।


अक्सर देखते हैं कि समाज के लोग शिक्षक को ताना मारकर अपनी खीझ निकाल कर परम शांति को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं , पर उन्हें नहीं पता यह शिक्षक , शिक्षक बनता कैसे है ,कितनी मेहनत करता है और निठल्लों के ताने सुनने के बाद भी  अपना कार्य चुपके से करता रहता है ।
आओ सुनाऊं तुम्हें बेसिक शिक्षकों की दारुण दशा ,कथा ..

कभी सोचा है जो तुम्हारा जान पहचान का या गांव मुहल्ले,रिश्तेदारी का जो लड़का या लड़की प्राईमरी का मास्टर बन गया है उसने कितनी मेहनत की , कितना तप किया, कितनी ठोकरें खाईं‌ तब जाकर अर्द्ध बुढ़ापे में नौकरी पाई ।
कभी पता किया ये आधा बुढ़ापा कैसे आ गया , नहीं किया होगा न क्योंकि तुम तो ठहरे करमार लोग , तुम्हें तो मुंह उठा के इतना कहने से मतलब कि बैठे बैठे के साठ सत्तर हजार पाते हैं मास्टर , कभी चिंतन किया है कि  इसके अलावा यदि और कुछ जानते होते तो तुम भी पाते होते साठ हजार , दूसरों पर टिप्पणी करके खीझ न मिटा रहे होते तुम ( तुम का मतलब हर उस शख्स से है जो मास्टर को कहता है फ्री का वेतन लेते हो )
कभी सोचा है ये  ज्यादातर मास्टर किस आर्थिक वर्ग के परिवारों के होते हैं , कभी जाना है कि ये हाई स्कूल के बाद होम ट्यूशन, दुकानों में काम , करने लगे थे क्योंकि इनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि इनकी उच्च शिक्षा के लिए शहर में रहने खाने फीस का पूरा प्रबंध कर सकते । कभी जाना है जब निठल्लों की फौज मां बाप के पैसों से मेलों में , टाकीजों में , मुर्गा दारू पार्टी में ,मस्ती करते थे / हैं , तब ये मास्टर बनने की जिद ठाने लड़के , अपनी खेलने कूदने , अच्छा कपड़ा, अच्छा खाना की इच्छा को अंदर ही अंदर रोते हुए दबा ले जाते थे/ हैं ।
इंटर , स्नातक फिर बीएड बीटीसी , टेट , सुपर टेट , हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट , सरकार से झगड़ कर लट्ठ खाकर, दिन दिन भर धूप में भूखे प्यासे इलाहाबाद, लखनऊ,दिल्ली की गलियों में किलोमीटरों पैदल बैग टांगें,वकीलों , अधिकारियों, मंत्रियों के दरों में गिड़गिड़ाते ,रोते हुए फिरते हैं ।
 
नौकरी मिलती है तो घर से चार छः सौ किमी दूर , घर में बूढ़े माता पिता को छोड़कर चले जाते हैं फिर वर्षों के लिए तप करने , शादी होती है , बच्चे होते हैं ।
घर में माता पिता खेती जानवर को कौन देखे सेवा करे ,। यही समय नौकरी का है , यही समय माता पिता की सेवा का , पत्नी बच्चों को समय देने का ।
पर पता है तीन सौ चार सौ किलोमीटर दूर पत्नी बच्चों को ले जाता है तो समाज के ताने कि चला गया अपनी पत्नी बच्चों को लेकर , घर जाये भाड़ में ।
पर वह शिक्षक है उसे पता है पूरी जिंदगी इन्हीं झंझावातों से गुजरना है ,‌ उसे घर परिवार के गरीबी के दिन याद है मां बाप की मेहनत याद है वह चला जाता है अकेला कार्य स्थल पर , फिर वही छात्र जीवन का दौर , पर अब उम्र ढलान पर है वो ऊर्जा गायब है जो बीस साल की उम्र में थी , इतने धक्के खा चुका है कि टाईम पर खाना चाहता है ,सोना चाहता है पर कहां मिलना ये सब ।
सुबह जागो नहाओ धोओ , कपड़े पहने भागो ,कमरे से पचास किलोमीटर दूर स्कूल , बस न छूट पाये, ट्रेन न‌ छूट पाये , हांफता फांदता भागता है , बाईक सीमा से अधिक गति से चलाता है , गाय या सुअर, कोई कुत्ता बीच में आकर  हड्डी पसली का इंतजाम कर देता है , गोबर कीचड़ , गड्ढे ,पत्थर पड़ने फिसल कर उधड़ जाता है । बहुत से टीचर अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं , परिवार अनाथ हो जाता है तमाम बातें सोचता जाता है समय से न पहुंचा तो दलालों द्वारा कोई अधिकारी गेट पर पहुंचा दिया होगा जो महीने भर का खून चूस जायेगा , अधिकारी न पहुंचा होगा तो कोई सड़क छाप पत्रकार ही कैमरा घुमा घुमाकर तांडव कर रहा होगा , अगर कोई न होगा गांव के लोग ही फोटो खींच कर सोशल मीडिया में पेल दिया होगा।
दिन भर पढ़ाने के अलावा विभागीय गैर विभागीय कामों में दबा सहमा काम‌ करता है , भूखा प्यासा फिर शाम पांच छः बजे कमरे में पहुंचता है , अब खाना खाये हुए चौबीस घंटे होने को होते हैं , कमरे में आकर फ्रेश‌ होकर पैर फैलाकर आराम करना चाहता है पर पेट में ऐंठन हो रही है , भोजन ,भोजन भी पकाना है जैसे तैसे दिमाग को शांत करके सब्जी रोटी ठोंक लेता है , अकेले घर की याद करते हुए पेट को शांत करने के लिए खाता है ।
घर में कोई बीमार हो जाए कोई समस्या आ जाये तो घंटों फोन घुमाता रहता है , टेंशन में। छोटी मोटी समस्याओं में घर जा नहीं सकता क्योंकि छुट्टी मिलना है वर्ष भर में  कुल चौदह वो भी इमरजेंसी के लिए बचाकर रखना है , त्यौहारों में तीन की छुट्टी मिली एक दिन जाने में एक दिन आने में एक दिन घर में रुक कर घर की समस्यायें सुनना , निदान करना ।
पता ही नहीं चलता कि वो पैदा ही  समस्याओं को सुनने , सुलझाने के लिए हुआ है।
पर ये किसी को ध्यान नहीं रहता कि ये भी बीमार होता होगा, जब ये गाड़ी से फिसल कर चुटहिल होता होगा तो घर की याद आती होगी , विभागीय गैर विभागीय अधिकारियों की डांट सुनता होगा, भूखा सो जाता होगा ,
वो अपनी समस्याएं किसी को  नहीं बता पाता वो मां बापू , भाई बहनों को टेंशन नहीं देना चाहता,वो अपनी समस्याएं किसी को शेयर नही कर पाता ।

वो अपनी समस्याएं न घर में शेयर कर पाता है न बाहर 
क्योंकि उसे बाहर वाले ताने मिलना है ,साठ हजार पाते हो फ्री का , 
और घर से मिलना है कहां जाता है साठ हजार , वो अंतर्मन में आंसुओं को रोककर हंसता है कि ठीक ही तो कहते हैं कि फ्री का मिलता है , इसलिए तो पता नहीं चलता कि कहां जाता है , 
घरवालों को लगता है उठाईगीरा है , रिश्तेदारों को लगता है खूब फ्री का पाता है , बदमाश है , जमा किये होगा , दोस्तों को लगता है बदल गया ।
ये किसी को नहीं लगता कि पूरे परिवार की जिम्मेदारी अब यही ऊपर से मुस्कान बिखेरता, सबको झेलता, बहाने बनाता , सबके ताने सुनता , प्राईमरी का मास्टर उठाता है।

 स्कूल‌ न जाने पर पकड़ गया तो पूजा देता होगा , लेट हो गया तो,देता होगा, किराया , पेट्रोल , घर के सदस्यों की  बीमारी  ,‌ समाज में ताने कम सुनने पड़े इसलिए थोड़ा बहुत सामाजिक कामों में आर्थिक मदद ।
सैलरी आई गई पता ही नहीं चलता ।
पर गांव,मुहल्ला रिश्ते दार तो तड़ाक से उठाई जीभ दै मारी 

फ्री का पाते हो , तोंद निकल आई है , अब कोई टेंशन नहीं होगी, ऐशो आराम की जिंदगी है अब तो , मास्टर तो कंजूस होते ही हैं।

हा हा हा हा हा

मास्टर बनने के लिए छात्र जीवन से लेकर मास्टर रहते हुए ताने सुनते हुए , पारिवारिक , सामाजिक , आर्थिक मुसीबतें झेलते हुए जो अंदर का दर्द का लावा होता है जो कभी निकलता ही नहीं ।

यह है बेसिक के शिक्षक की पारिवारिक, सामाजिक,आर्थिक दशा ,जिस पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता।

        इस पीड़ा को कोई तो लिखता ,शायद मेरे द्वारा ही लिखी जानी थी ।

नरेन्द्र सिंह लोधी
शिक्षक 
मोबाईल नं-09621487604
साभार - व्हाट्सएप ग्रुप्स