लघु कथा मै पंचिंग बैग हूं क्या?
, मै पंचिंग बैग हूं क्या,
बेटा घर में घुसते ही बोला," मम्मी कुछ खाने को दे दो यार बहुत भूख लगी हैं। यह सुनते ही मैंने कहा," बोला था ना ले जी कुछ काँलेज, सब्जी तो बना ही रखी थी।" बेटा बोला, ' यार मम्मी अपना ज्ञान ना अपने पास रखा करो। अभी जो कहा हैं वो कर दो बस और हाँ, रात में ढंग का खाना बनाना,,,,,,, पहले ही मेरा दिन अच्छा नही गया हैं।" कमरे में गई तो उसकी आँख लग गई थी। मैंने जाकर उसको जगा दिया कि कुछ खा कर सो जाए।
चीख कर वो मेरे ऊपर बरस गया कि जब आँख लग गई थी तो उठाया क्यों तुमने? मैंने कहा तूने ही तो कुछ बनाना को कहा था। वो बोला, मम्मी एक तो काँलेज में टेंशन ऊपर से तुम यह अजीब से काम करती हो। दिमाग लग लिया करो कभी तो,"।
तभी घंटी बजी तो बेटी भी आ गई थी। मैंने प्यार से पूछा, आ गई मेरी बेटी कैसा था दिन?
बैग पटक कर बोली मम्मी आज पेपर अच्छा नही हुआ"। मैंने कहा," कोई बात नही,अगली बार कर लेना"।
मेरी बेटी चीख कर बोली, " अगली बार क्या रिजल्ट तो अभी खराब हुआ ना। मम्मी यार तुम जाओ यहाँ से तुमको कुछ नही पता"।
मैं उसके कमरे से भी निकल गई।
शाम को पतिदेव आए तो मुँह लाल था। थोडी बात करने की कोशिश कि तो वो भी झल्ला के बोले, यार मुझे अकेला छोड़ दो यार। पहले ही बाँस ने क्लास ले ली हैं और अब तुम शुरू हो गई।"
आज कितने सालों से यही सुनती आ रही थी। सबकी पंचिंग बैग मैं ही थी। हर औरत भी ना अपना इज्जत करवानी आती ही नही।
" मैं सबको खाना खिला कर कमरे में चली गई।"
अगले दिन से मैंने किसी से भी पूछना बंद कर दिया। जो जैसा कहता कर के दे देती। पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती। पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा था?
बेटा काँलेज और बेटी स्कूल से आती तो मैं कुछ ना बोलती ना कुछ पूछती। यही सिलसिला काफी दिन चली,,,,,,,,
संडे वाले दिन तीनो मेरे पास आए बोले तबियत ठीक हैं ना? क्या हुआ हैं इतने दिनों से चुप हो। बच्चे भी हैरान थे। थोडी देर चुप रहने के बाद मैं बोली। मैं तुम लोगों की पंचिंग बैग हूँ क्या?
जो आता हैं अपना गुस्सा या अपना चिडचिडापन मुझपे निकल देता हैं। मैं भी इंतजार करती हूँ तुम लोगों का पूरा दिन काम कर के अब मेरे बच्चे आएंगे, पति आएंगे दो बोल बोलेगे प्यार के और तुम लोग आते ही मुझपे पंच करना शुरू कर देते हो।
अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नही गया तो क्या वो मेरी गलती हैं? हर बार मुझे झिडकना सही हैं? 😭😭
कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नही हुई। तीनो चुपपे। सही तो कहा मैंने दरवाजें पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया हैं मुझे। जो आता हैं मुक्का मार के चलता बनता हैं। तीनो शर्मिदां थे।
हर माँ , हर बीबी अपने बच्चो और पति के घर लौटने का इंतजार करती हैं। उनसे पूछती हैं कि दिन भर में सब ठीक था या नही, लेकिन कभी हम उनको ग्रांटेड ले लेते हैं। हर चीज का गुस्सा उन पर निकालते हैं। कभी कभी तो यह ठीक हैं लेकिन अगर ये अापके घरवालो की आदत बन जाए तो आप आज से ही सबका पंचिंग बैग बनाना बंद कर दे"।
तुम!!! खुद को कम मत आँको, खुद पर गर्व करो।"
" क्योकि तुम हो तो,
थाली में गर्म रोटी हैं।
ममता की ठंडक हैं,
प्यार की ऊष्मा हैं।
तुमसे , घर में संध्या बाती, घर हैं।
घर लौटने की इच्छा हैं,,,,
क्या बना हैं रसोई में
आज झांककर देखने की चाहत हैं।
तुमसे, पूजा की थाली हैं,
रिश्तो के अनुबंध हैं,
पडो़सी से संबंध हैं।"
सुनीता संतोष दुबे
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