शनि का नाम शनैश्चर क्यों ? पीपल वृक्ष की पूजा क्यों होती है ?जानिए इस पोस्ट में।
महर्षि दधीचि का नाम कौन नहीं जानता है ? महर्षि दधीचि द्वारा देह दान की कथा किसने नहीं सुनी या पढ़ी होगी ?
किन्तु क्या आप जानते हैं कि जब महर्षि ने अपनी देह दान दिया था तो उनकी उम्र कितनी थी या उनकी पत्नी की उम्र कितने वर्ष थी और उनके कोई संतान थी या नहीं ?यदि नहीं तो आइए पुराणों से छानकर प्रस्तुत एक बेहद त्याग और तपभरी कथा का अनुश्रवण करें-
देवासुर संग्राम में असुरों के नायक वृत्तासुर के आगे असहाय देवों को जब ज्ञात हुआ कि यदि महर्षि दधीचि की अस्थियों का अस्त्र(वज्र) बनाकर असुरराज पर प्रहार किया जाएगा तो उसका विनाश तय है तब देवेंद्र स्वयम् महर्षि दधीचि के सम्मुख देह दान करने की याचना लेकर गए।
उस समय महर्षि दधीचि की उम्र मात्र 31 वर्ष और उनकी धर्मपत्नी की उम्र 27 वर्ष तथा गोद में नवजात बच्चे की उम्र मात्र 3 वर्ष थी। देवेंद्र इन्द्र की याचना और देवताओं पर आए संकट के निवारण हेतु महर्षि दधीचि देह दान हेतु तैयार हो गए तथा अपने प्राण योगबल से त्याग दिए।देवताओं ने उनकी अस्थियां निकाल कर मांसपिंड को उनकी पत्नी को दाह हेतु दे दिया।
श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।
इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक कि जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।
एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा-
नारद- बालक तुम कौन हो ?
बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।
नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?
बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ।
तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की उम्र में ही हो गयी थी।
बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?
नारद- शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।
ब्रह्मा जी से वर मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया।शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए।
सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-
1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।
2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।
ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया।तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।
सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का अकूत भंडार है।
Why Shani is named Shanashcher? Why is the Peepal Tree Worshiped?
Who does not know the name of Maharishi Dadhichi? Who would not have heard or read the story of body donation by Maharishi Dadhichi?
But do you know that when Maharishi donated his body, how old was his age or how old was his wife and if he had any children? Monitor-
When the helpless gods in front of the Asuras hero Vrittasur in Devasur Sangram came to know that if Maharishi Dadhichi's ashes were attacked by making a weapon (Vajra), his destruction is certain, then Devendra himself took the request to donate the body in front of Maharishi Dadhichi. went.
At that time, Maharishi Dadhichi's age was only 31 years and his wife's age was 27 years and the newborn baby's age in the lap was only 3 years. Maharishi Dadhichi agreed to donate the body for the solicitation of Devendra Indra and the distress faced by the gods and gave up his life with the power of yoga. The gods removed his bones and gave the meatpit to his wife.
When the cremation of Maharishi Dadhichi's crematorium was being cremated in the crematorium, his wife could not bear the disconnection of her husband and sat in a funeral pyre by keeping a 3-year-old boy in a large peepal tree cotter nearby.
In this way Maharishi Dadhichi and his wife were sacrificed, but the boy kept in Peepal's Kotar began to shout with hunger and thirst. When no object was found, he started growing big by eating Peepal's laps (fruits) which fell in the Kotar. Later, the life of the child was safe by eating peepal leaves and fruits.
One day Devarshi Narada passed by there. Narada looking at the boy in Peepal's coter asked him to introduce-
Narada - child, who are you?
Boy - This is what I want to know too.
Narada - Who is your father?
Boy - This is what I want to know.
Narada then noticed, and Narada was surprised to say that, O child! You are the son of the great donor Maharishi Dadhichi. The gods had conquered the asuras by making a thunderbolt from your father's ashes. Narada told that your father Dadhichi had died only at the age of 31.
Child - What was the reason for my father's premature death?
Narada - Shani was Mahadasha of your father.
Boy - What was the reason for the misfortune that came over me?
Narada - Mahadasha of Shanidev.
After saying this, Devarshi Narada named Piplad, who lived by eating peepal leaves and lakes, and initiated him.
After Narada's departure, the boy Piplad pleased Brahma with great penance as told by Narada. When Brahma ji asked the boy Piplad to ask for a bride, Piplad asked for the power to burn any thing with his eyes.
Upon meeting the groom from Brahma Ji, Pippalad first offered Shani Dev before him and opened his eyes and started incinerating him. Shanidev started burning. There was uproar in the universe. All the gods failed to protect Suryaputra Shani.
Seeing his son burning in front of his eyes, Sun also pleaded to save him from Brahma. Finally, Brahma Ji himself appeared in front of Pippalad and said to leave Shanidev but Piplad was not ready. Said to ask. Then Piplad was happy and asked for the following two boons -
1- Saturn will not have any place in the horoscope of any child from birth to 5 years, so that no other child is orphaned like me.
2- The Peepal tree has given me shelter for the orphan. Therefore, whoever offers water on the Peepal tree before sunrise will not be affected by the Mahadasha of Saturn.
Brahma ji gave a boon saying Aastastu. Then Piplad freed them by striking the burning Saturn on his feet with his brahmandand. Due to which Shani Dev's feet were damaged and he was not able to walk as fast as before. Hence since then Shani is "Shanai: charati ya: shanascher:" that is, the one who moves slowly is called shanascher, and the black body due to the burning in Saturn fire. Those organs became dislocated.
Presently, it is for the religious purpose of worshiping the black idol of Shani and the Peepal tree. Later Pippalad composed the Question Upanishad, which is still a tremendous store of knowledge.
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