डाऊनलोड करें,16 अगस्त 2021 से 21 अगस्त 2021 तक की शिक्षक डायरी का पीडीएफ नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर देखें।
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झूठा अभिमान
एक मक्खी एक हाथी के ऊपर बैठ गयी। हाथी को पता न चला मक्खी कब बैठी।
मक्खी बहुत भिनभिनाई आवाज की, और कहा, ‘भाई! तुझे कोई तकलीफ हो तो बता देना।
वजन मालूम पड़े तो खबर कर देना, मैं हट जाऊंगी।’ लेकिन हाथी को कुछ सुनाई न पड़ा। फिर हाथी एक पुल पर से गुजरने लगा बड़ी पहाड़ी नदी थी, भयंकर गङ्ढ था, मक्खी ने कहा कि ‘देख, दो हैं, कहीं पुल टूट न जाए!
अगर ऐसा कुछ डर लगे तो मुझे बता देना। मेरे पास पंख हैं, मैं उड़ जाऊंगी।’
हाथी के कान में थोड़ी-सी कुछ भिनभिनाहट पड़ी, पर उसने कुछ ध्यान न दिया। फिर मक्खी के बिदा होने का वक्त आ गया। उसने कहा, ‘यात्रा बड़ी सुखद हुई, साथी-संगी रहे, मित्रता बनी, अब मैं जाती हूं, कोई काम हो, तो मुझे कहना, तब मक्खी की आवाज थोड़ी हाथी को सुनाई पड़ी, उसने कहा, ‘तू कौन है कुछ पता नहीं, कब तू आयी, कब तू मेरे शरीर पर बैठी, कब तू उड़ गयी, इसका मुझे कोई पता नहीं है।
लेकिन मक्खी तब तक जा चुकी थी सन्त कहते हैं, ‘हमारा होना भी ऐसा ही है। इस बड़ी पृथ्वी पर हमारे होने, ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
हाथी और मक्खी के अनुपात से भी कहीं छोटा, हमारा और ब्रह्मांड का अनुपात है। हमारे ना रहने से क्या फर्क पड़ता है? लेकिन हम बड़ा शोरगुल मचाते हैं।
वह शोरगुल किसलिये है? वह मक्खी क्या चाहती थी? वह चाहती थी हाथी स्वीकार करे, तू भी है; तेरा भी अस्तित्व है, वह पूछ चाहती थी।
हमारा अहंकार अकेले तो जी नही पा रहा है। दूसरे उसे मानें, तो ही जी सकता है।
इसलिए हम सब उपाय करते हैं कि किसी भांति दूसरे उसे मानें, ध्यान दें, हमारी तरफ देखें; उपेक्षा न हो।
सन्त विचार- हम वस्त्र पहनते हैं तो दूसरों को दिखाने के लिये, स्नान करते हैं सजाते-संवारते हैं ताकि दूसरे हमें सुंदर समझें। धन इकट्ठा करते, मकान बनाते, तो दूसरों को दिखाने के लिये। दूसरे देखें और स्वीकार करें कि तुम कुछ विशिष्ट हो, ना की साधारण।
तुम मिट्टी से ही बने हो और फिर मिट्टी में मिल जाओगे, तुम अज्ञान के कारण खुद को खास दिखाना चाहते हो वरना तो तुम बस एक मिट्टी के पुतले हो और कुछ नहीं।
अहंकार सदा इस तलाश में है–वे आंखें मिल जाएं, जो मेरी छाया को वजन दे दें।
याद रखना आत्मा के निकलते ही यह मिट्टी का पुतला फिर मिट्टी बन जाएगा इसलिए अपना झूठा अहंकार छोड़ दो और सब का सम्मान करो क्योंकि सब जीवों में परमात्मा का अंश आत्मा है
राधे राधे जी
false pride
A fly sat on an elephant. The elephant did not know when the fly sat.
The fly made a very buzzing sound, and said, 'Brother! Let me know if you have any problem.
If you know the weight, inform me, I will move away.' But the elephant could not hear anything. Then the elephant started passing over a bridge, there was a big mountain river, there was a terrible pit, the fly said, 'Look, there are two, lest the bridge should break!
If anything like this scares me, then let me know. I have wings, I will fly.
There was a slight buzzing in the elephant's ear, but he paid no heed. Then it was time for the fly to leave. She said, 'The journey has been very pleasant, stay friends, friendship is formed, now I go, if there is any work, then tell me, then the sound of the fly was heard by a little elephant, she said, 'I don't know who you are. I have no idea when you came, when you sat on my body, when you flew away.
But the fly was gone by then, the saint says, 'Our existence is also like this. It doesn't matter if we are on this big earth or not.
Far smaller than the ratio between the elephant and the fly, is the ratio between us and the universe. What difference does it make if we are not there? But we make a big noise.
Why is that noise? What did that fly want? She wanted the elephant to accept, you are too; You also exist, she wanted to ask.
Our ego cannot live alone. If others believe in him, then only he can live.
That's why we all take measures that in some way others obey him, pay attention, look at us; Don't be neglected
Saint Thought - We wear clothes, we bathe, decorate and decorate to show others so that others consider us beautiful. To collect money, build houses, then to show others. Look at others and accept that you are something special, not ordinary.
You are made of clay and then you will get mixed in dust, you want to show yourself special because of ignorance, otherwise you are just an effigy of clay and nothing else.
The ego is always on the hunt – to find eyes that give weight to my shadow.
Remember, as soon as the soul leaves, this effigy of clay will become dust again, so drop your false ego and respect everyone because the soul is part of God in all living beings.
Radhe Radhe ji
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