भरी हुई शिक्षक डायरी मई से अब तक की सभी शिक्षक डायरी एवम ई पाठशाला रजिस्टर के पीडीएफ के लिंक साथ ही दीक्षा कोर्स का लिंक।
दीक्षा एप कोर्स लिंक:
वे सभी दीक्षा ऐप प्रशिक्षण लिंक जो सितम्बर 2021 तक अवश्य पूर्ण करने हैं। डायरेक्ट लिंक सहित।
नए दीक्षा के शिक्षकों के प्रशिक्षण लांच दिनांक 20 अगस्त से लेकर 31 अगस्त 2021 तक करना है ये 6 प्रशिक्षण पूर्ण ,1 सितंबर को यह बैच बंद कर दिए जाएंगे।
शिक्षक डायरी:
5 जुलाई 2021 से 10 जुलाई 2021 तक का भरा हुआ शिक्षक डायरी ।
टीचर डायरी 05 July 2021 to 31 July 2021 ,की भरी हुई शिक्षक डायरी।
31 मई 2021 से 7 अगस्त 2021 तक की भरी हुई शिक्षक डायरी,
शिक्षक डायरी |दिनांक 02.08.2021 से 14.08.2021 तक की |भरी हुई शिक्षक डायरी,साफ सुथरे पीडीएफ सहित।
कक्षा 1,2,3,4,5, 6 ,7 ,8, की भरी हुई शिक्षक डायरी 2 जुलाई से 17 अगस्त तक की न्यू क्लीन पीडीएफ।
ई पाठशाला:
दिनांक 31.05.2021 से 03.07.2021 तक कक्षा 1 से 8 तक का रजिस्टर भरा हुआ मिशन प्रेरणा की ई पाठशाला का पीडीएफ डाउनलोड करें।
02 जुलाई 2021 से 19 अगस्त तक का भरा हुआ ई पाठशाला रजिस्टर का साफ सुथरा पीडीएफ ।
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आज की कहानी
"हम सुख के पीछे भाग रहे है पर सुख और कहीं नहीं हमारे अंदर ही छुपा है।"
एक आदमी के पास बहुत धन था। इतना कि अब और धन पाने से कुछ सार नहीं था।जितना था, उसका भी उपयोग नहीं हो रहा था।
मौत करीब आने लगी थी। न बेटे थे, न बेटियां थीं, कोई पीछे न था। और जीवन धन बटोरने में बीत गया।
वह तथाकथित महात्माओं के पास, कि मुझे कुछ आनंद का सूत्र दो। महात्मा, पंडित, पुरोहित, सब के द्वार खटखटाए। खाली हाथ लौटा।
फिर किसी ने कहा कि एक साधू को हम जानते हैं, शायद वही कुछ कर सके। उनके ढंग जरूर अनूठे हैं; इसलिए चौंकना मत।
उनके रास्ते उनके निजी हैं; उनकी समझाने की विधियां भी थोड़ी बेढब होती हैं। मगर अगर कोई न समझा सके, तो जिनका कहीं कोई इलाज नहीं है, उस तरह के लोगों को हम वहां भेज देते हैं।
जिनका कहीं कोई इलाज नहीं, उनके लिए सुनिश्चित यहां उपाय है।
उस धनी ने एक बड़ी झोली भरी हीरे—जवाहरातों से और गया साधू के पास।
साधू बैठे थे एक झाड़ के नीचे। पटक दी उसने झोली उनके सामने और कहा कि इतने हीरे—जवाहरात मेरे पास हैं, मगर सुख का कण भी मेरे पास नहीं। मैं कैसे सुखी होऊं ?
साधू ने आव देखा न ताव, उठाई झोली और भागे ! वह आदमी तो एक क्षण समझ ही नहीं पाया कि यह क्या हो रहा है।
महात्मागण ऐसा नहीं करते ! एक क्षण तो ठिठका रहा, अवाक ! फिर उसे होश आया कि इस साधू ने तो लूट लिया, मारे गए, सारी जिंदगी भर की कमाई ले भागा।
हम सुख की तलाश में आए थे, और दुःखी हो गए। भागा, चिल्लाया कि लुट गया, बचाओ ! चोर है, बेईमान है, भागा जा रहा है !
पूरे गांव में उस साधू ने चक्कर लगवाया। साधू का गांव तो जाना—माना था, गली—कूंचे से पहचान थी, इधर से निकले, उधर से निकल जाए।
भीड़ भी पीछे हो ली— भीड़ तो साधू को जानती थी ! कि जरूर होगी कोई विधि ! गांव तो साधू से परिचित था, उसके ढंगों से परिचित था।
धीरे—धीरे आश्वस्त हो गया था कि वह जो भी करे, वह चाहे कितना बेबूझ मालूम पड़े, भीतर कुछ राज होता है।
लेकिन उस आदमी को तो कुछ पता नहीं था। वह पसीना—पसीना, कभी भागा भी नहीं था जिंदगी में इतना,
थका—मांदा, साधू उसे भगाता हुआ, दौड़ाता हुआ, पसीने से लथपथ करता हुआ वापिस अपने झाड़ के पास लौट आया।
जहां उसका घोड़ा खड़ा था। लाकर उसने थैली वहीं पटक दी झाड़ के पीछे छिप कर खडे हो गए।
वह आदमी लौटा; झोला पड़ा था, घोड़ा खड़ा था; उसने झोला उठा कर छाती से लगा लिया और कहा कि हे! हे परमात्मा ! तेरा धन्यवाद !
आज मुझ जैसा प्रसन्न इस दुनिया में कोई भी नहीं !
साधू वृक्ष के उस तरफ से झांके और , कहा : कुछ सुख मिला ? यही राज है। यही झोली तुम्हारे पास थी,
इसी को लिए तुम फिर रहे थे, और सुख का कोई पता नहीं था। यही झोली वापिस तुम्हारे हाथ में है,
लेकिन बीच में फासला हो गया, थोड़ी देर को झोली तुम्हारे हाथ में न थी, थोड़ी देर को झोली से तुम वंचित हो गए थे, अब तुम कह रहे हो आनंद अा गया—शर्म नहीं आती तुम्हे कह रहे हो
कि हे प्रभु, धन्यवाद तेरा कि आज मैं आह्लादित हूं, आज पहली दफा आनंद की थोड़ी झलक मिली।
अरे पागल आदमी ये झोली जिसमे तुझे सुख दिखने लगा प्रभु ने पहले से तुम्हे दी हुई थी पर तुझे उसका मूल्य नहीं था खोने पर अकल अा गई।
बैठो घोड़े पर और भाग जाओ, नहीं तो मैं झोली फिर छीन लूंगा। रास्ते पर लगो ! रास्ता तुम्हें मैंने बता दिया।
लोग ऐसे हैं,लोग ही नहीं, सारा अस्तित्व ऐसा है। हम जिसे गंवाते हैं,बाद में उसका मूल्य पता चलता है। जब तक गंवाते नहीं तब तक मूल्य पता नहीं चलता।
जो तुम्हें मिला है, उसकी तुम्हें दो कौड़ी कीमत नहीं है। जो खो गया, उसके लिए तुम रोते हो। जो खो गया, उसका अभाव खलता है।व्यक्ति के जाने के बाद उसकी याद आती है कमी खलती है महत्व समझता है तो उसके रहते में रिश्ते में गर्मी लाओ न।उसको पूरा मान सम्मान दो न। रिश्ते में अहसास कराओ कि आप का होना जिंदगी में बहुत जरूरी हैं।
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today's story
"We are running after happiness, but happiness is nowhere else hidden within us."
A man had a lot of money. So much so that there was no point in getting any more money. Whatever was there, it was not being used.
Death was drawing near. There were no sons, no daughters, no one was behind. And life was spent collecting money.
To the so-called Mahatmas, to give me some source of bliss. Mahatmas, Pandits, Purohits, knocked on everyone's door. Returned empty handed.
Then someone said that we know a monk, maybe he can do something. His ways are certainly unique; So don't be surprised.
His ways are his private; Their methods of explaining are also a bit awkward. But if no one can explain, then we send people like that who have no cure anywhere.
For those who have no cure, there is a sure remedy here.
The rich man filled a big bag with diamonds and jewels and went to the monk.
The sages were sitting under a tree. He slammed the bag in front of them and said that I have so many diamonds and jewels, but I do not have even a particle of happiness. how can i be happy
The sage didn't look at him, picked up his bag and ran away! The man could not understand for a moment what was happening.
Mahatmas don't do that! Stunned for a moment, speechless! Then he came to his senses that this sadhu had robbed, killed, ran away with his entire life's earnings.
We came in search of happiness, and became unhappy. Ran, shouted that it was robbed, save! Thief, dishonest, running away!
That sage made rounds in the whole village. The village of the sage was well-known, it was recognized by the street, get out from here, get out from there.
The crowd also retreated - the crowd knew the monk! There must be some method! The village was acquainted with the monk, familiar with his ways.
Slowly he became convinced that whatever he does, no matter how foolish he may seem, there is some secret inside.
But the man didn't know anything. That sweat and sweat, had never even run so much in life,
Exhausted, the sage chased him away, running, covered in sweat and returned back to his tree.
where his horse was standing. After bringing it, he slammed the bag there and stood hiding behind the tree.
the man returned; The bag was lying, the horse was standing; He picked up the bag and put it on his chest and said hey! Oh god! Thank you!
There is no one in this world as happy as me today!
The monk peeped from that side of the tree and said: Got some happiness? That's the secret. You had this bag
That's why you were living again, and there was no idea of happiness. This bag is back in your hand,
But there is a gap in the middle, for a while the bag was not in your hand, for a while you were deprived of the bag, now you are saying that Anand has arrived - you are not ashamed to say it
That O Lord, thank you that today I am happy, today for the first time got a little glimpse of bliss.
Hey mad man, this bag in which you started seeing happiness, God had already given you, but you did not have the value of it, you became wise to lose it.
Get on the horse and run away, otherwise I will snatch the bag again. Get on the road! I told you the way.
People are like this, not only people, the whole existence is like this. What we lose, we find out later. You don't know the value until you lose.
What you have got is not worth a dime to you. You cry for what is lost. The one who is lost, misses it. After the person leaves, he misses it, if he understands the importance, then do not bring heat in the relationship in his life. Do not give him full respect. Realize in the relationship that your presence is very important in life.
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