शीतकालीन परिषदीय विद्यालय की ps,ups,composit की समय सारणी।
शीतकालीन समय सारणी परिषदीय
कमपोजिट विद्यालय:
https://drive.google.com/file/d/18KL6oI_b6eHxJNfV9j6zV67-JN0ijz38/view?usp=drivesdk
शीतकालीन समय सारणी परिषदीय प्राथमिक विद्यालय:
https://drive.google.com/file/d/18JfYKaPtWL-9-Uyuqb9ZAaAmWJZAja6S/view?usp=drivesdk
शीतकालीन समय सारणी परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालय:
https://drive.google.com/file/d/18KZb-lM4rJKVZrmmzElb02CmMO07gmxY/view?usp=drivesdk
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आत्मा की तृप्ति
बस स्टैंड पर बैठा मैं गृह नगर जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था। अभी बस स्टैण्ड पर बस लगी नहीं थी।मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था। मुझे देखकर लगभग 10 साल की एक बच्ची मेरे पास आकर बोली, "बाबू पैन ले लो,10 के चार दे दूंगी। बहुत भूख लगी है, कुछ खा लूंगी।"
उसके साथ एक छोटा-सा लड़का भी था, शायद भाई हो उसका।
मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए।
आगे उसका सवाल बहुत प्यारा सा था,फिर हम कुछ खाएंगे कैसे ?
मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम कुछ खाओगे जरूर।
मेरे बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे, मैने बैग से निकाल एक-एक पैकेट दोनों को पकड़ा दिया, पर मेरी हैरानी की कोई हद ना रही जब उसने एक पैकेट वापिस करके कहा,"बाबू जी! एक ही काफी है, हम बाँट लेंगे"।
मैं हैरान हो गया जवाब सुनकर !
मैंने दुबारा कहा: "रख लो, दोनों। कोई बात नहीं।"
मेरी आत्मा को झिंझोड़ दिया उस बच्ची के जवाब ने। उसने कहा:.............. "तो फिर आप क्या खाओगे"?
इस संसार में करोड़ों अरबों कमाने वाले लोग जहां उन्नति के नाम पर इंसानियत को ताक पर रखकर लोगों को बेतहाशा लूटने में लगे हुए हैं, वहां एक भूखी बच्ची ने मानवता की पराकाष्ठा का पाठ पढ़ा दिया।
मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा,इसे कहते हैं आत्मा के तृप्त लोग, लोभवश किसी से इतना भी मत लेना कि उसके हिस्से का भी हम खा जाएं..............
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